Vinayaka chaturthi 2022: गणेश जी की पूजा में वर्जित है तुलसी, पढ़ें पौराणिक कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2022 07:37 AM

ganesh ji

सनातन धर्म में तुलसी माता घर-घर पूजी जाती हैं। जगन्नाथ भगवान श्री कृष्ण को तुलसी के बिना भोग ही नहीं लगता। हिंदू धर्म में तुलसी को सर्वाधिक पवित्र तथा माता स्वरुप माना जाता है।

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Ganesh ji aur tulsi ji ki katha: सनातन धर्म में तुलसी माता घर-घर पूजी जाती हैं। जगन्नाथ भगवान श्री कृष्ण को तुलसी के बिना भोग ही नहीं लगता। हिंदू धर्म में तुलसी को सर्वाधिक पवित्र तथा माता स्वरुप माना जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से भी तुलसी को औषधीय गुणों वाला पौधा माना जाता है तथा इसे संजीवनी की संज्ञा दी गई है। शास्त्रों में तुलसी को मां लक्ष्मी कहकर पुकारा गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी के पत्तों का सेवन अनेक रोगों के उपचार में काम आता है। अनेक ग्रंथो में भी तुलसी की महिमा का बखान हुआ है। क्या आप जानते हैं  विष्णु प्रिया तुलसी को भगवान गणेश की पूजा में निषेध क्यों माना गया है ? गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर हम अपने पाठकों को पौराणिक कथा के माध्यम से बताएंगे गणेश जी के पूजन में वर्जित क्यों है तुलसी ?

PunjabKesari Ganesh ji aur tulsi ji ki katha
पद्मपुराण के श्लोक के अनुसार
'न तुलस्या गणाधिपम्‌'
अर्थात तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी न की जाए।

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कार्तिक माहात्म्य के इस श्लोक के अनुसार
'गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया'
अर्थात गणेश जी की तुलसी पत्र और दुर्गा जी की दूब से पूजा न करें। पवित्र तुलसी के गणेश पूजन में निषेध को लेकर शास्त्रों में एक दृष्टांत मिलता है।

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पौराणिक काल में गणेश जी गंगा तट पर तपस्या में विलीन थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे। शास्त्रों के अनुसार तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे। उनके कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था।  

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देवी तुलसी का मन गणेश जी की और मोहित हो गया। तब देवी तुलसी ने गणेश जी का ध्यान अपनी और आकर्षित करने हेतु उपहास किया। इस कृत्य से गणेश जी का ध्यान भंग हो गया। गणेश जी ने तुलसी से उनका परिचय मांगा तथा उनके आगमन का कारण पूछा। 

इस पर गणेश जी ने देवी तुलसी से कहा, तपस्या में विलीन किसी ब्रह्म योगी का ध्यान भंग करना अशुभ होता है तथा तुलसी द्वारा किए गए इस कृत्य को अमंगलकारी बताया। तुलसी की विवाह की मंशा जानकर गणेश जी ने स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर देवी तुलसी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

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देवी तुलसी विवाह आवेदन ठुकराए जाने पर गणेश जी से रुष्ट हो गई तथा तुलसी ने क्रोध में आकार गणेश जी को श्राप दे दिया की उनके एक नहीं बल्कि दो विवाह होंगे। श्रापित गणेश जी तुलसी से कुपित हो उठे और उन्होंने भी देवी तुलसी को श्राप दे दिया। गणेश जी ने तुलसी को श्राप दिया की तुलसी की संतान असुर होगी तथा असुरों द्वारा कुपित हो कर वृक्ष बन जाएगी। एक राक्षस की मां तथा वृक्ष बनने का श्राप सुनकर तुलसी व्यथित हो उठी तथा उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगते हुए उनकी वंदना की। 

तुलसी की वंदना सुनकर गणेश जी शांत हो गए तथा उन्होंने तुलसी से कहा की भगवान श्री कृष्ण तुम्हारा कल्याण करेंगे और आपका यह दोष अमंगलकारी न हो। तब गणेश जी ने तुलसी से कहा कि तुम्हारी संतान असुर शंखचूर्ण होगा। गणेश जी ने कहा, " हे तुलसी! तुम वृक्ष के रूप में नारायण और श्री कृष्ण को प्रिय होगी तथा कलयुग में विश्वकल्याण हेतु मोक्षदायिनी देव वृक्ष के रूप में पूजी जाओगी परंतु मेरे पूजन में तुम्हारा प्रयोग निषेध होगा।"

 तभी से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है। 

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