Edited By ,Updated: 17 Sep, 2016 03:50 PM
सर्वप्रथम पूज्य गौरीपुत्र श्री गणेश भक्तों की विपदा को हरने वाले देव हैं। भगवान गणेश का पूजन देवता भी करते हैं जिनके स्मरण मात्र से सारे काम होते हैं।
सर्वप्रथम पूज्य गौरीपुत्र श्री गणेश भक्तों की विपदा को हरने वाले देव हैं। भगवान गणेश का पूजन देवता भी करते हैं जिनके स्मरण मात्र से सारे काम होते हैं। ऐसे श्री गणेश को बारंबार प्रणाम जिनके स्मरण करने मात्र से मेरे सारे काम सफल हो जाते हैं, ऐसे श्री गणेश को बारंबार मेरा प्रणाम हो। धर्मशास्त्रों के अनुसार गणपति ने 64 अवतार लिए जिनमें गणपति बप्पा के प्रमुख अवतार हैं
मयूरेश्वर
त्रेतायुग में महाबली सिंधु के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान ने मयूरेश्वर के रूप में अवतार लिया। यह अवतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अभिजित मुहूर्त में हुआ था। इस अवतार में गणेश माता पार्वती के यहां अवतरित हुए थे। इस अवतार में गणेश जी के षडभुजा थीं, उनके चरण कमलों में छत्र, अंकुश एवं ऊर्ध्व रेखायुकृत कमल आदि चिन्ह थे। उनका नाम मयूरेश पड़ा। मयूरेश रूप में भगवान गणेश ने बकासुर, नूतन, कमालासुर, सिंधु एवं पुत्रों और उसकी अक्षौहिणी सेना का संहार किया तथा देवता, मनुष्य आदि को दैत्यों के भय से मुक्ति दिलाई।
श्री गजानन
द्वापर युग में राजा वरेण्य के यहां भगवान गणेश गजानन रूप में अवतरित हुए। चतुर्भुजी थे। नासिका के स्थान पर सूंड सुशोभित थी। मस्तक पर चंद्रमा तथा हृदय पर चिंतामणि दीप्तिमान थी। वे दिव्य गंध तथा दिव्य वस्त्राभारणों से अलंकृत थे। उनका उदर विशाल एवं उन्नत था, हाथ-पांव छोटे-छोटे और कर्ण शूर्पाकार थे। आंखें छोटी-छोटी थीं, गणेश जी का ऐसा विलक्षण मनोरम रूप था। इस अवतार में भगवान गणेश ने सिंदूर नामक दानव को उसकी सेना सहित परास्त किया था और उसे युद्ध भूमि में मार डाला। उस समय क्रुद्ध गजानन ने उस सिंदूर का रक्त अपने दिव्य अंगों पर पोत लिया, तभी से वे सिंदूरहा, सिंदूरप्रिय तथा सिंदूरवदन कहलाए।
महोत्कट विनायक
कृतयुग में भगवान गणपति ‘महोत्कट विनायक’ के नाम से प्रख्यात हुए। अपने महान उत्कट ओजशक्ति के कारण वे ‘महोत्कट’ नाम से विख्यात हुए, उन महातेजस्वी प्रभु के दस भुजाएं थीं, उनका वाहन सिंह था, वे तेजोमय थे। उन्होंने देवांतक तथा नरांतक आदि प्रमुख दैत्यों के संत्रास से संत्रस्त देव, ऋषि-मुनि, मनुष्यों तथा समस्त प्राणियों को भयमुक्त किया। देवांतक से हुए युद्ध में वे द्विदंती से एकदंती हो गए।
श्री धूम्रकेतु
श्री गणेश जी का कलियुगीय भावी अवतार धूम्रकेतु के नाम से विख्यात होगा। कलि के अंत में घोर पापाचार बढ़ जाने पर, देवताओं की प्रार्थना पर सद्धर्म के पुन: स्थापन के लिए वे इस पृथ्वी पर अवतरित होंगे और कलि का विनाश कर सतयुग की अवतारणा करेंगे।