ऐसा कार्य करने वाले को होती है, उच्च स्थिति की प्राप्ति

Edited By ,Updated: 24 Jul, 2016 04:14 PM

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परोपकार को, दान को भारतीय संस्कृति ने महत्वपूर्ण मूल्य माना है। संपत्ति का केवल संचय करने वाले व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता

परोपकार को, दान को भारतीय संस्कृति ने महत्वपूर्ण मूल्य माना है। संपत्ति का केवल संचय करने वाले व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता। दानी व्यक्ति को यह सम्मान सहजता से प्राप्त होता है।

 

दान करने वाले को उच्च स्थिति प्राप्त होती है, धन का संचय करने वाले को नहीं। पानी देने वाले बादल सदा उच्च स्थान पर होते हैं तथा तालाब, सागर को निचले स्तर पर स्थान मिलता है। दान अच्छा मूल्य है इसलिए कोई दान करेगा इसका कोई भरोसा नहीं है क्योंकि इंसान का मतलब सदा उसके आड़े आता है अत: स्मृति ने, पुराणों ने दान को पुण्य से जोड़ दिया। पुण्य संचय भी आखिर मतलब का ही हिस्सा है इसलिए पुण्य के लिए ही सही किंतु लोग दान करने लगे। 

 

तीर्थ स्थानों पर अन्नछत्र, प्याऊ जैसी सुविधाएं करने लगे। राजे-रजवाड़ों, सेठ-साहूकारों ने देश भर की नदियों पर घाट बनवाए। ऊंचे पहाड़ों पर स्थित मंदिरों तक जाने में भक्तों को सुविधा हो इसलिए सीढिय़ां बनीं, पक्का फर्श बना, तालाब खोदे गए। पुण्य का काम होना चाहिए, यह सोचकर कई सामाजिक कार्य, सुविधाएं बन गईं जिनकी गिनती करना असंभव है। हमारे ऋषि-मुनियों को इस सच्चाई का आभास बहुत पहले से ही हुआ था कि सारी प्रकृति सदा देने के लिए ही है, परोपकार के लिए ही है।

 

पेड़ परोपकार के लिए ही फल धारण करते हैं। नदियां परोपकार के लिए ही बहती हैं। गऊएं परोपकार के लिए ही दूध देती हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने यही कहकर जागरण किया कि ईश्वर का दिया हुआ शरीर परोपकार के लिए है, अपने मतलब के लिए नहीं। मानव ने अपना जीवन खुशहाल बनाने के लिए प्रकृति द्वारा दी गई हर चीज का उपयोग किया। अब दान का उपयोग समाज के लिए भी होना चाहिए।

 

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