करवाचौथ: कैसे करें पारंपरिक व्रत जानिए, सरगी का वैज्ञानिक आधार

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2016 09:41 AM

karva chauth

प्रत्येक महीने को आरंभिक चतुर्थी (कृष्ण पक्षीय चौथी तिथि) को गणेश चतुर्थी व्रत कहा जाता है जिस दिन हिंदू श्रद्धालु अपने-अपने प्रदेश में प्रचलित प्रथाओं के अनुसार

प्रत्येक महीने को आरंभिक चतुर्थी (कृष्ण पक्षीय चौथी तिथि) को गणेश चतुर्थी व्रत कहा जाता है जिस दिन हिंदू श्रद्धालु अपने-अपने प्रदेश में प्रचलित प्रथाओं के अनुसार व्रत-पालन करते हैं। कार्तिक (सातवें महीने) की कृष्ण पक्षीय चतुर्थी को ‘श्री गणेश चतुर्थी’ के अतिरिक्त करवाचौथ भी कहा जाता है। उस दिन सुहागिनें अपने पतिदेव की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं।


कैसे करें पारंपरिक व्रत?
* प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके पति, पुत्र, पौत्र, पत्नी तथा सुख-सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जल व्रत रखें। 


* शिव, पार्वती, गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें। 


* बाजार में मिलने वाला करवा चौथ का चित्र या कैलेंडर पूजा स्थान पर लगा लें।


* पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल भरें। 


* सुहाग की सामग्री कंघी, सिंदूर, चूडिय़ां, रिबन, रुपए आदि रखकर दान करें। 


* सास के चरण छूकर आशीर्वाद लें और फल, फूल, मेवा, बायन, मिष्ठान, बायना, सुहाग सामग्री,14 पूरियां, खीर आदि उन्हें भेंट करें। 


* विवाह के प्रथम वर्ष तो यह परम्परा सास के लिए अवश्य निभाई जाती है। इससे सास- बहू के रिश्ते और मजबूत होते हैं।


* अंत में चंद्रोदय पर अर्ध्य दें।


सरगी का वैज्ञानिक आधार
व्रत रखने वाली महिलाओं को उनकी सास सूर्योदय से पूर्व सरगी ‘सदा सुहागन रहो ’ के आशीर्वाद सहित खाने के लिए देती हैं जिसमें फल, मिठाई, मेवे, मटिठ्यां, सेवियां, आलू से बनी कोई सामग्री, पूरी आदि होती है। यह खाद्य सामग्री शरीर को पूरा दिन निर्जल रहने और शारीरिक आवश्यकता को पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम होती है। 
 

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