नवरात्र में ऐसे करें पूजन और व्रत

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2016 10:48 AM

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नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांति पाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गा देवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली,

नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांति पाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गा देवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ नौ दिनों तक करना चाहिए। इच्छानुसार फल प्राप्ति के लिए विशेष मंत्र से अनुष्ठान करना या योग्य वैदिक पंडित से विशेष मंत्र से अनुष्ठान करवाना चाहिए।


जौ या खेतरी बीजना
नवरात्र में मिट्टी के गमले या मिट्टी की वेदी पर जौ बीज कर आम के पत्तों से ढांप दें, तीसरे दिन अंकुर निकल आएंगे। जौ नौ दिनों में बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इनकी हरियाली परिवार में धन-धान्य, सुख-समृद्धि की प्रतीक है। 


अखंड ज्योति एवं पाठ
यदि संभव हो और सामर्थ्य भी हो तो देसी घी का अखंड दीपक जलाएं। इसके आसपास एक चिमनी रख दें ताकि दीपक बुझ न पाए। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

क्या है दुर्गा सप्तशती में?
इसमें 700 श्लोक ब्रह्मा, वशिष्ठ व विश्वामित्र द्वारा रचित हैं, इसीलिए इसे सप्तशती कहते हैं। इसमें 90 मारण के, 90 मोहन के, 200 उच्चाटन के, 200 स्तंभन के, 60-60 विद्वेषण के कुल मिला कर 700 श्लोक हैं। यह तंत्र व मंत्र दोनों का अद्वितीय संपूर्ण ग्रंथ है। इनका दुरुपयोग न हो इसलिए, तीनों विद्वानों ने इन्हें शापित भी कर दिया। अत: पहले शापोद्धार के 20 मंत्र पढ़ कर ही दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ होता है।


मां दुर्गा की आरती के नियम
आरती के कुछ विशेष नियम होते हैं। विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारनी चाहिए। चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से आरती करने का नियम है। आरती की बत्तियां 1, 5, 7 अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियां बनाकर आरती की जानी चाहिए।


व्रत
पूरे नौ दिन अथवा सप्तमी, अष्टमी या नवमी पर निराहार उपवास रखा जा सकता है। इस मध्य केवल फलाहार भी किया जा सकता है।


कन्या पूजन
अष्टमी या नवमी पर 9 वर्ष की कन्या तथा एक बालक को घर बुलाकर उनका पूजन करके भोजन करवाएं। उन्हें उचित दक्षिणा एवं उपहार सहित विदा करें।
 

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