महिला-पुरुष का इन तिथियों पर मिलना, सात जन्मों तक बनाता है रोगी और दर‌िद्र

Edited By ,Updated: 14 Sep, 2016 01:09 PM

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सनातन धर्म के शास्त्रों में जीवन जीने से संबंधित बहुत से नियम निर्धारित किए गए हैं। जिनका पालन करने से वह सुख-समृद्धी भोग सकते हैं।

सनातन धर्म के शास्त्रों में जीवन जीने से संबंधित बहुत से नियम निर्धारित किए गए हैं। जिनका पालन करने से वह सुख-समृद्धी भोग सकते हैं। आधुनिकता की आंधी दौड़ में अंधा हुआ व्यक्ति यदि इन परंपराओं के अनुरूप जीवन नहीं जीता तो उसे न केवल इस जन्म में बल्कि अगले जन्मों में भी संताप सहना पड़ता है।
 
भारत में पिछले कई दशकों से शादी का मोनोगैमी सिस्टम चल रहा है अर्थात एक पति या पत्नी के साथ पूरा जीवन बिताना। वक्त के साथ लोगों ने इस रिवाज का महत्व जाना और बिना किसी लिखित आदेश के यह सिस्टम हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण नियम बन गया। वैवाहिक जीवन में प्यार के साथ-साथ शारीरिक संबंधों की जरूरत मर्द और औरत दोनों को ही होती है लेकिन शास्त्रों के अनुसार रखें कुछ बातों का ध्यान
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्‍णखंड में वर्णित है क‌ि द‌िन के किसी भी पहर में विशेषकर  सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त महिला-पुरुष को संबंध नहीं बनाने चाहिए अन्यथा आने वाले सात जन्मों तक व्यक्त‌ि रोगी और दर‌िद्र होता है।
 
महाभारत के अनुशासन पर्व अनुसार अमावस्या पर संबंध बनाने से नीच योनी में जन्म मिलता है जैसे कीट, पशु, कीड़े आदि और साथ ही नर्क की यातना भी सहनी पड़ती है।
 
इसके अतिरिक्त पूर्ण‌िमा, चतुर्दशी, अष्टमी, ग्रहण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, श‌िवरात्र‌ि, नवरात्र‌ि, अपने जन्मदिन और माता-प‌िता की मृत्यु त‌िथ‌ि पर महिला-पुरुष का मिलना वर्जित है।
 

महर्षि व्यास के अनुसार पराई स्त्री से संबंध बनाने वाला व्यक्ति भयानक नर्क में जाता है। फिर उसे पहले भेडिया फिर कुत्ता, सियार, गिद्ध, सांप, कौआ अौर अंत में बगुले का जन्म मिलता है। उसके पश्चात उसे मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है।  

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