Edited By ,Updated: 24 Nov, 2015 11:35 AM
हम प्राय: बच्चों को अपने तरीके से संस्कारित करने का प्रयास करते हैं। उन्हें कहते हैं कि ऐसा करो या ऐसा मत करो। सारा दिन उपदेश देते रहते हैं।
हम प्राय: बच्चों को अपने तरीके से संस्कारित करने का प्रयास करते हैं। उन्हें कहते हैं कि ऐसा करो या ऐसा मत करो। सारा दिन उपदेश देते रहते हैं। बच्चा इन उपदेशों से दुखी रहता है। कई व्यक्ति खुद तो मेहमानों का यथोचित स्वागत या अभिवादन नहीं करते लेकिन अपने बच्चों से चाहते हैं कि वे हर आने-जाने वाले का स्वागत व अभिवादन ठीक से करें।
जहां तक बहुत छोटे बच्चों का संबंध है उनका बड़ों की ही तरह स्वागत या अभिवादन करना बिल्कुल जरूरी नहीं। इसका यह अर्थ नहीं है कि वे आगंतुकों से मिलना-जुलना या उनका प्यार पाना नहीं चाहते। वे भी उनका प्यार पाना चाहते हैं लेकिन अपने तरीके से। हो सकता है बच्चा संकोच कर रहा हो, ऐसे में उसे कुछ समय देना चाहिए। संकोच के समय बच्चे से बलपूर्वक कुछ करवाना तो उसे जिद्दी बनाना है।
वास्तव में बच्चे अपने ढंग से शुरूआत करना चाहते हैं। कई बार वे शब्दों से नहीं, अपने कार्यों से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं। बच्चों का मेहमानों या आगंतुकों के लिए पानी या जलपान स्वयं ले जाने की जिद करना भी अभिवादन ही तो है। आप मेहमानों के लिए पानी या नाश्ता वगैरह ले जाते हैं तो बच्चा भी ऐसा ही करने की कोशिश करता है।
बच्चों से मेहमानों का जैसा स्वागत या अभिवादन करवाना चाहते हैं तो वैसा ही आप स्वयं कीजिए। यदि आप में शिष्टाचार है तो बच्चा भी वैसा ही शिष्टाचार अपना लेगा। इसलिए बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए माता-पिता व दादा-दादी को बच्चों से जिद करने की बजाय उनके सामने अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करना चाहिए। बड़ों के आचरण से ही बच्चा शिष्टाचार ग्रहण करता है।