Edited By ,Updated: 29 Nov, 2016 09:58 AM
धर्मपरायण भारतीयों की सांस-सांस में शुभ संस्कारों की भावभीनी सुगंध रची-बसी है। ऐसी क्रियाओं में सर्वप्रथम उल्लेखनीय है- प्रणाम। इस छोटी सी क्रिया के प्रयोगजनित प्रणाम अमित और अमिट हैं।
धर्मपरायण भारतीयों की सांस-सांस में शुभ संस्कारों की भावभीनी सुगंध रची-बसी है। ऐसी क्रियाओं में सर्वप्रथम उल्लेखनीय है- प्रणाम। इस छोटी सी क्रिया के प्रयोगजनित प्रणाम अमित और अमिट हैं। जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वादों का अन्न उगाने का यह बीज मंत्र है। सामाजिक शिष्टाचार एवं पारस्परिक स्नेह संचार की यह प्रथम सीढ़ी है। प्रणतजन को निहारते ही हमारे हृदय से वात्सल्य की रसधार उमडऩे लगती है। हम उसका सर्वविध कल्याण करने को उद्यत हो जाते हैं।
जहां एक तरफ प्रणामकर्ता के अहंकार का शुद्धिकरण समर्पण रूप में दिखाई पड़ता है तो दूसरी ओर प्रणम्य व्यक्ति के हृदय में संचित असंतोष की धूलि भी विगलित हो आशीर्वाद की धार में बह निकलती है। दोनों ओर प्रेम पलता है।
प्रणाम क्रिया में ध्यान रखने वाली बातें-
यदि अपना शरीर शुद्ध न हो, स्वयं स्नान नहीं किया हो तो प्रणाम करते समय गुरुजनों का स्पर्श नहीं करना चाहिए। स्नान करते समय, शौच आदि के समय, तैलाभ्यंग के समय, शव ले जाते समय प्रणाम नहीं करना चाहिए।
स्त्रियों को पति के अतिरिक्त सभी पुरुषों को दूर से ही प्रणाम करना चाहिए। समान लोगों को दोनों हाथ जोड़कर अंजलि को ठीक मध्य वक्षस्थल में लगाकर मस्तक झुकाकर प्रणाम करना चाहिए।
प्रणाम रहस्य : आशीर्वाद देते समय जब श्रेष्ठजन प्रणतजन को उसके मस्तक पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं तो स्पर्शमणि के समान उनके अंदर प्रवाहित विद्युत-शक्ति का संचार प्रणतजन की अंतर्रात्मा को ऊर्जान्वित कर देता है। मनोमालिन्य मिटाकर स्नेह, सौहार्द, सद्भाव की सुप्रतिष्ठा करने वाला यह संस्कार शैशवावस्था में ही प्रतिरोपित कर देना चाहिए। व्यर्थ ही है वह मनुष्य जो सज्जनों, गुरुजनों और देवविग्रहों के सम्मुख नहीं झुकता।