वास्तु और सेहत का है गहरा नाता, सोने पर सुहागे का काम करेंगे ये उपाय

Edited By ,Updated: 27 Jan, 2017 03:37 PM

architecture and health has close relationship

आयुर्वेद में तीन तरह के दोषों वात, हवा, पित्त अग्रि तथा कफ का विचार किया जाता है तथा इन तीनों का विश्लेषण करके ही उचित दवाओं का निर्धारण होता है। प्राचीन

आयुर्वेद में तीन तरह के दोषों वात, हवा, पित्त अग्रि तथा कफ का विचार किया जाता है तथा इन तीनों का विश्लेषण करके ही उचित दवाओं का निर्धारण होता है। प्राचीन धर्मग्रंथों में वास्तु एवं आयुर्वेद का गहरा संबंध बताया गया है। इनके नियमों के आधार पर लोगों के स्वभाव एवं आदतों से यह निर्धारित किया जा सकता है कि उनमें इन तत्वों में से किस तत्व की प्रधानता है और इसके आधार पर उपाय भी किए जा सकते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर- पश्चिम वायव्य दिशा हवा की, दक्षिण-पूर्व आग्रेय दिशा अग्रि की और उत्तर पूर्व ईशान दिशा जल का क्षेत्र मानी जाती है। कोई व्यक्ति यदि वात तत्व से प्रभावित है तथा अपना ज्यादा समय अपने घर या दफ्तर के उत्तर-पश्चिम में बिताता है तो उसके शरीर में वात और ज्यादा जमा हो जाता है।


इसका उसके स्वास्थ्य तथा आदतों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वास्तु के नियमों के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपने प्रभावित तत्व के क्षेत्र में कम से कम समय बिताना चाहिए। कौन व्यक्ति किस तत्व से प्रभावित है, इसकी जानकारी के लिए उसके स्वभाव का अध्ययन करना आवश्यक  है। वात तत्व से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव आमतौर पर हवा की तरह, पित्त तत्व से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव अग्रि की तरह तथा कफ तत्व से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव जल की तरह होता है। जैसे- कफ तत्व से प्रभावित व्यक्ति आमतौर पर सुबह देर से जागता है तथा सर्दी-जुकाम से पीड़ित रहता है। उसे साइनस होने की संभावना बनी रहती है और हो सकता है कि वह आलस्य तथा मोटापा से भी परेशान हो।

 

आप यदि वात तत्व से प्रभावित हों तो आप अपना ज्यादा समय दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पूर्व में बिताएं। ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकता है। यदि पित्त तत्व से प्रभावित हों तो आपके लिए भी दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व में अधिक समय बिताना श्रेयस्कर रहेगा मगर यदि आप कफ तत्व से प्रभावित हों तो आप अपना ज्यादा समय दक्षिण-पूर्व में बिताएं।

 

ऐसा इसलिए, क्योंकि जल तत्व को अग्रि सोखती है। ऐसे में यदि किसी कारणवश आपको उत्तर-पूर्व क्षेत्र का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़े तो आप गाढ़े रंगों जैसे लाल, नीला, नारंगी आदि का इस्तेमाल कर इन दुष्प्रभावों से बच सकते हैं। इस तरह कफ दोष का भी निदान हो जाएगा। रंग अग्रि तत्व से संबंधित हैं। इसी प्रकार यदि आप वात तत्व से प्रभावित हों और आपको उत्तर-पश्चिम दिशा का इस्तेमाल ज्यादा करना पड़ रहा हो तो नीले, हरे उजले रंगों का इस्तेमाल कर, इस क्षेत्र में संतुलन स्थापित कर सकते हैं। इस तरह वात एवं पित्त दोष को दूर करने के लिए हम दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व का इस्तेमाल करते हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि दक्षिण-पश्चिम भूमि तत्व का क्षेत्र माना जाता है, जो आग बुझाने में सक्षम है। 
 

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