Edited By ,Updated: 05 Feb, 2015 08:15 AM
चाणक्य नीति
धनधान्यप्रयोगेषु विद्वासंग्रहणे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्।।
अर्थात
चाणक्य नीति
धनधान्यप्रयोगेषु विद्वासंग्रहणे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्।।
अर्थात धन से संबंधित कोई भी काम करने में, विद्या धारण करते समय, खाते-पीते वक्त लज्जा का त्याग करने पर ही सुखी रहा जा सकता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं की जीवन में धन, विद्या और भोजन संबंधित कामों में कभी शर्म नहीं करनी चाहिए अन्यथा शर्म-शर्म में आपके कर्म भी फूट सकते हैं।
1. धन जीवन की अमूल्य अवश्यकता है। इसके अभाव में जीवन यापन करना असंभव है। अत: किसी व्यक्ति से धन के लेन-देन में सतर्कता बरतें। यदि किसी को जरूरत के समय उधार दें तो उसे वापिस लेते समय शर्म न करें अन्यथा आपको धन की हानि उठानी पड़ेगी।
2. प्रत्येक इंसान पेट भरने के लिए ही दिन-रात मेहनत करता है। भोजन से ही पेट भरता है और इंसान को पूर्ण तृप्ति का अहसास होता है। जब भी भोजन करने बैठे पेट भर कर भोजन करें, आधे पेट कभी न उठें। विशेषकर जब किसी के यहां अतिथि बनकर जाएं तो भोजन करते समय शर्म न करें नहीं तो आप ही भूखे रह जाएंगे और अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करेंगे।
3. शिक्षा स्थान पर जब विद्या ग्रहण करने जाएं तो अपने अध्यापक से अपने मन में उत्पन्न हो रहे सभी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करें क्योंकि वहां हम सीखने के उद्धेश्य से जाते हैं। यदि आप शर्म करेंगे और उपने मन की कुंठाओं का हल नहीं प्राप्त कर पाएंगे तो अज्ञान के अंधेरे से आपका भविष्य घिर जाएगा और आप जीवन में कभी उन्नति नहीं कर पाएंगे।