बीते दो ग्रहण मचा सकते हैं भूकंप, सुनामी व बाड़ से उत्पात

Edited By ,Updated: 08 Apr, 2015 09:46 AM

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भारतीय ज्योतिष के संहिता खंड मेदिनी ज्योतिष के अनुसार सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण का मौसम, वर्षा, बाड़, भूकंप ज्वालामुखी विस्फोट आदि उत्पातों से संबंधित बताया गया है। ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं का हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से अध्ययन करते आए हैं। इस...

भारतीय ज्योतिष के संहिता खंड मेदिनी ज्योतिष के अनुसार सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण का मौसम, वर्षा, बाड़, भूकंप ज्वालामुखी विस्फोट आदि उत्पातों से संबंधित बताया गया है। ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं का हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से अध्ययन करते आए हैं। इस ज्ञान को पराशर, गर्ग, बादरायण तथा वराह मिहिर जैसे महर्षियों ने अपनी संहिता ग्रंथों में सहेज कर आने वाली पीढ़ियों को उपकृत किया है।

महर्षि ऋषि वराह मिहिर ने ब्रह्मांड को सात-सात नक्षत्रों के आधार पर चार मंडलों में बांटा है।

1.वायव्य मंडल

2.इंद्र मंडल 

3.वरुण मंडल 

4.आग्नेय मंडल

आज के इस वैज्ञानिक युग में भी अभी तक मौसम, वर्षा, बाड़, भूकंप ज्वालामुखी विस्फोट आदि उत्पातों का सटीक अनुमान लगाना असंभव है। सुनामी व भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा का रहस्य अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है। जहां विज्ञान इसका पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ है वहां ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे तथ्यों का उल्लेख है जिनके विश्लेषण से इसके आने की पूर्व सूचना प्राप्त की जा सकती है। 

भूकंप व सुनामी का ज्योतिषी सिद्धांत: विज्ञान के अनुसार भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों के आपस में टकराने के कारण आते तथा भूकंप से ही सुनामी का जन्म होता है तथा ज्योतिष के अनुसार टेक्टोनिक प्लेटें ग्रहों के प्रभाववश खिसकती हैं और टकराती हैं। भूकंप की तीव्रता प्लेटों पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करती है। 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का भूकंप व सुनामी पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। जब कभी एक पक्ष अर्थात 16 दिन में दो ग्रहण पड़ते हैं तो उसके 6 मास के भीतर भूकंप आते हैं। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार सूर्य ग्रहण पर शनि वक्री हो तथा चंद्र ग्रहण पर वृहस्पति वक्री हो तो तीन पक्ष के भीतर भूकंप आने की संभावना बढ़ जाती है। जब कभी शनि का संबंध बुध या मंगल से अथवा पृथ्वी तत्व राशियों (वृष, कन्या व मकर) के स्वामियों से हो तो भूकंप की संभावना बढ़ जाती है। 

भूकंप के समय कम से कम दो ग्रह वक्री होते हैं। अगर सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण व चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा की कुंडली में सूर्यदेव अष्टमेश से पीड़ित हों अथवा मंगल या बुध व शनि का आपस में संबंध हो या बुध व शनि या मंगल व शनि का संबंध लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव या अष्टमेश से होता है। साथ-साथ बुध वक्री या सूर्य से कम अंश का होता है या अस्त होता हो तो भूकंप व सुनामी की संभवना बढ़ जाती है। इसके अलावा राहु व केतु के मध्य चार या अधिक ग्रह अशुभ स्वामियों के नक्षत्र पर होते हों तथा शनि व मंगल, शनि व गुरु, शनि-बुध, गुरु-मंगल या गुरु-बुध का युति या दृष्टि संबंध होता हो तो सुनामी की संभवना बढ़ जाती है। 

भूकंप व सुनामी का ज्योतिषी आधार: इस वर्ष 14.03.15 शनिवार के दिन शनिदेव अपने ही नक्षत्र अनुराधा मे वक्रीय हो गए हैं तथा देवगुरू वृहस्पति पहले से ही अपने परम शत्रु बुध के नक्षत्र अश्लेषा मे वक्रीय चल रहे हैं। नवसंवत्सर की प्रातः अर्थात शाक संवत 1937 व विक्रम संवत 2072 के सूर्योदय कालीन कुंडली के अनुसार अर्थात शनिवार 21.03.15 की प्रातः 06 बजकर 26 मिनट की कुंडली के आधार पर सूर्य, चंद्र, मंगल, शुक्र व वृहस्पति राहु व केतु के मध्य मे स्थित थे। शुक्रवार दिनांक 20.03.15 चैत्र मास की अमावस्या तिथि पर वर्ष 2015 का पहला संपूर्ण खगोलीय सूर्य ग्रहण लग था। शनिवार दिनांक 04.04.15 चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को वर्ष 2015 का पहला पूर्ण चंद्रग्रहण लग था। दोनों ग्रहण 16 के अंतराल पर लगे थे। दोनों ग्रहण के समय शनिदेव व वृहस्पति अपनी वक्रीय स्थिति में थे। वृहस्पति शनि से संबंध भी बना रहा है और ग्रहण के अंतराल मे मंगल शनि और वृहस्पति से संबंध भी बना रहा था। नवसंवत्सर की प्रातः राहू चंद्रमा के नक्षत्र हस्त में था तथा चंद्र से संबंध बना रहा था। यदि एक पंक्ति में कहना चाहे तो कह सकते हैं कि भूकंपों पर व प्राकृतिक आपदाओं पर चंद्रमा व राहु का अधिकतम प्रभाव होता है। उस दिन अशुभ तिथि, अशुभ योग व अशुभ नक्षत्र होता है। 

ज्योतिषी सम्भावित चेतावनी: आने वाले 6 महीने अर्थात मंगलवार दिनांक 13.10.15 शारदीय नवरात्र की घट स्थापना तक का समय भूकंप सुनामी व प्राकृतिक आपदाओं हेतु अत्यधित प्रलयंकारी सिद्ध हो सकता है। इस 6 महीने के अंतराल मे काली धुल की प्रचंड आंधी, ज्वालामुखी विस्फोट, बाड़, भूकंप व सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा आ सकती हैं। प्राकृतिक आपदा अत्यधिक रूप से अरब खाड़ी से सटे देशों, अफ्रीका, पूर्वी अफ़्रीका महाद्वीप के देश, पश्चिमी रूस और यूरोपीय देशों मे देखे जाएंगे।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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