गुण भी दुर्गुण बन जाते हैं ऐसे व्यक्तियों के संग से
Edited By ,Updated: 02 May, 2015 11:05 AM
विवेकिनमनुप्राप्ता गुणा यान्ति मनोज्ञताम्।
सुतरां रत्नमाभाति चामीकरनियोजितम्।।
अर्थ : जो व्यक्ति विवेकशील है और
विवेकिनमनुप्राप्ता गुणा यान्ति मनोज्ञताम्।
सुतरां रत्नमाभाति चामीकरनियोजितम्।।
अर्थ : जो व्यक्ति विवेकशील है और विचार करके ही कोई कार्य संपन्न करता है, ऐसे व्यक्ति के गुण श्रेष्ठ विचारों के मेल से और भी सुंदर हो जाते हैं। जैसे सोने में जड़ा हुआ रत्न स्वयं ही अत्यंत शोभा को प्राप्त हो जाता है।। 9।।
भावार्थ : भाव यह है कि गुण गुणी को ही शोभा पहुंचाते हैं, अविवेकी व्यक्ति को नहीं। उसके पास गुण भी दुर्गुण बन जाते हैं।