Edited By ,Updated: 13 Nov, 2016 12:21 PM
आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी है, जिसे बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान श्रीहरि विष्णु का संपूर्ण विधि विधान से पूजन
आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी है, जिसे बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान श्रीहरि विष्णु का संपूर्ण विधि विधान से पूजन किया जाता है। इसके साथ ही आज व्रत-उपवास करके नदी, सरोवरों आदि के तट पर 14 दीपक प्रज्वलित करने की परंपरा है।
एक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु महादेव का पूजन करने के लिए काशी गए। वहां पर उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके 1,000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ की पूजा करने का संकल्प किया। लेकिन जब श्रीहरि विष्णु पूजा करने लगे तो भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। यह देख श्रीहरि विष्णु ने सोचा कि उनकी आंखे भी तो कमल की भांति हैं अौर उन्हें अर्पित करने लगे। तभी महादेव ने प्रकट हुए अौर उन्होंने कहा हे हरि- तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' के नाम से जानी जाएगी। इस दिन जो भी व्यक्ति पूर्ण भक्ति भाव से पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ की प्राप्ति होगी।
यह दिन श्रीहरि विष्णु और भगवान भोलेनाथ के पूजन का दिन है। निर्णय सिन्धु के मुताबिक जो व्यक्ति इस दिन 1,000 कमल फूलों से श्रीहरि विष्णु के बाद भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। पुरुषार्थ चिंतामणि में उल्लेख है कि इस दिन भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का दिन उपवास करके तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरि विष्णु अौर भोलेनाथ का पूजन करने से स्वर्ग के द्वार खुलते हैं।