Edited By ,Updated: 19 Jan, 2017 12:26 PM
किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए भारी-भरकम दान देने और महंगी पूजा करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ मन को उस देवता की तरह सरल बनाने की अवश्यकता है। हम किसी मातृशक्ति की
किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए भारी-भरकम दान देने और महंगी पूजा करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ मन को उस देवता की तरह सरल बनाने की अवश्यकता है। हम किसी मातृशक्ति की पूजा कर उसे प्रसन्न करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले अपनी जन्म देने वाली मां को प्रसन्न करना चाहिए। वैसे भी मां का दर्जा बहुत ऊंचा है। प्राय: अपने संगे-संबंधियों का हक छीन कर, नाजायज तरीके से दूसरे का हिस्सा लेकर यदि यज्ञ-हवन कोई करेगा तो उसका लाभ निश्चित रूप से उसे ही मिलेगा, जिसका हिस्सा लिया गया है।
लोगों से सुनने में आता है कि बहुत तीर्थयात्राएं कीं, यज्ञ-अनुष्ठान किए, किंतु कोई लाभ नहीं मिला। लाभ तो मिला, क्योंकि किसी भी निवेश का रिटर्न तो मिलता ही है। हां, लाभ उसको मिला जिसके हिस्से के धन से पूजन कार्य किया गया। भगवान को रिझाना है तो सिर्फ उत्तम आचरण से, न कि प्रलोभन से। भगवान शंकर को तो एक लोटा जल से प्रसन्न किया जा सकता है। कोई कुटिलता का परिचय दे और लोगों से चाहे कि लोग उसके प्रति सहृदयी रहें, तो यह संभव नहीं।
यदि प्रेम, सहयोग, सदभाव, करुणा रूपी दान, परिवार, समाज में किया जाए तो यह ज्यादा प्रभावशाली होगा। पूजा-पाठ तो अच्छे संस्कारों के प्रति लगाव के लिए किया जाना चाहिए, न कि नौकरी, जमीन-जायदाद, मुकद्दमे में जीत के लिए। राह चलते कोई व्यक्ति घायल दिख जाए और हम उसे अनदेखा कर मंदिर जाएं तो कोई लाभ नहीं हो सकता है कि भगवान परीक्षा ले रहा हो कि हम सहृदयी हैं या हृदयहीन। इसलिए अपने कार्यों, विचारों, चाल-चलन से भगवान की कृपा जल्दी हासिल की जा सकती है।