Hanuman Jayanti: हनुमान जी के बल से रावण हुआ पराजित, किसी और के वश में नहीं था ऐसा करना

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Apr, 2023 08:40 AM

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शिवपुराण के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था।  हनुमान जी को भगवान शिव का श्रेष्ठ अवतार ‘महारुद्र’ भी कहा जाता है।

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Hanuman ji ki story: शिवपुराण के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था।  हनुमान जी को भगवान शिव का श्रेष्ठ अवतार ‘महारुद्र’ भी कहा जाता है। जब भी श्रीराम-लक्ष्मण पर कोई संकट आया, हनुमान जी ने उसे अपनी बुद्धि और पराक्रम से दूर कर दिया। वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में स्वयं भगवान श्रीराम ने अगस्तय मुनि से कहा है कि हनुमान के पराक्रम से ही उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की है। अपनी महाशक्तियों के कारण हनुमान जी वह सब कर सकते थे जो किसी और के वश में नहीं था।

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कई राक्षसों का वध
युद्ध में हनुमान जी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया। इनमें धुम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमान जी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार, हनुमान जी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमान जी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।

समुद्र लांघना
माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया।
तब अंगद ने वहां उपस्थित सभी पराक्रमी वानरों से उनके छलांग लगाने की क्षमता के बारे में पूछा तब किसी वानर ने कहा कि वह 30 योजन तक छलांग लगा सकता है, तो किसी ने कहा कि वह 50 योजन तक छलांग लगा सकता है। ऋक्षराज जामवंत ने कहा कि वह 90 योजन तक छलांग लगा सकते हैं। सभी की बात सुनकर अंगद ने कहा कि मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंगा लेकिन लौट पाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है, तब जामवंत ने हनुमान जी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमान जी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।

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माता सीता की खोज
समुद्र लांघने के बाद हनुमान जी जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी ने उन्हें रोक लिया। हनुमान जी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमान जी ने माता सीता को बहुत खोजा लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दीं, फिर भी हनुमान जी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। मां सीता के न मिलने पर हनुमान जी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया। यह सोचकर उन्हें बहुत दुख हुआ लेकिन इसके बाद भी वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमान जी ने माता सीता को देखा तो वह अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमान जी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।

अक्षय कुमार का वध व लंका दहन
माता सीता की खोज करने के बाद हनुमान जी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमान जी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमान जी ने इसलिए किया ताकि वह शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमान जी को पकडऩे आए तो उन्होंने उनका वध कर दिया। तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षय कुमार को भेजा, हनुमान जी ने उसको भी मार दिया। हनुमान जी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका में जाकर माता सीता की खोज तथा राक्षसों का वध कर लंका को जलाने का साहस हनुमान जी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।

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विभीषण को अपने पक्ष में करना
श्रीरामचरित मानस के अनुसार जब हनुमान जी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात विभीषण से हुई। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे? तब हनुमान जी ने कहा कि भगवान श्रीराम अपने सभी भक्तों से प्रेम करते हैं। जब विभीषण रावण को छोड़ कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि यह रावण का भाई है इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमान जी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

राम-लक्ष्मण के लिए पहाड़ लाना
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमान जी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ व कैलाश शिखर दिखाई देंगे। उन दोनों के बीच एक औषधियों का पर्वत है, तुम उसे ले आओ। जामवंत जी के कहने पर हनुमान जी तुरंत उस पर्वत को लेने उड़ गए। अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा ले आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।

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