नीले रंग की बोतल से पीएं जल भागेंगे रोग, जानें और भी हैं ढेरों लाभ

Edited By ,Updated: 09 Jan, 2017 10:36 AM

blue water bottle

नीले रंग के साथ, स्नेह, सौजन्य, शांति, पवित्रता जैसी प्रवृत्तियां जुड़ती हैं। मनोविज्ञान के अनुसार नीला रंग बल, पौरुष और वीर-भाव का प्रतीक है। जिस महापुरुष में जितना ही अधिक बल-पौरुष है,

नीले रंग के साथ, स्नेह, सौजन्य, शांति, पवित्रता जैसी प्रवृत्तियां जुड़ती हैं। मनोविज्ञान के अनुसार नीला रंग बल, पौरुष और वीर-भाव का प्रतीक है। जिस महापुरुष में जितना ही अधिक बल-पौरुष है, दृढ़ता, साहस, शौर्य है, कठिन से कठिन परिस्थितियों में निरंतर सत्य,नीति धर्म के लिए संघर्ष करने की योग्यता है, वचनों में स्थायित्व है, संकल्पशक्ति और धीरता है, उसे उतने ही नीले रंग से चित्रित किया जाता है। 


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र तथा लीला पुरुषोत्तम योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण दोनों का सम्पूर्ण जीवन मानवता की रक्षा एवं दानवता के विरुद्ध युद्ध करने में व्यतीत हुआ था। इन दोनों देवताओं का वर्ण नीला है। कारण यह है कि ये मनुष्य की सर्वोच्च युद्ध विषयक शक्तियों से परिपूर्ण हैं। इनमें पौरुष, धैर्य, वीरता, कष्ट-सहिष्णुता, सत्य और धर्म की रक्षा के लिए कभी युद्ध से विमुख न होने, कठिनाइयों से विचलित न होने आदि अनेक वीरोचित गुण भरे हुए हैं।


जैसे नीला रंग आकाश और पृथ्वी पर सर्वव्यापक है, उसी प्रकार नीले रंग वाले वीर श्रीराम और महायोद्धा श्रीकृष्ण भी सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हैं। नीला रंग क्षत्रिय-स्वभाव प्रकट करता है। नीला रंग यह बताता है कि क्षत्रिय को युद्ध से नहीं हटना चाहिए। क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर और कोई बात नहीं है। 


नीला रंग उद्योगी पुरुषों का रंग है। इस रंग को धारण करने वाला व्यक्ति अपनी इंद्रियों को वश में रखता है, भोगों से घृणा करता है और धर्म के अनुसार युद्ध में लगता है। जिस प्रकार नीला समुद्र गहन गंभीर माना गया है, इसी प्रकार वीरवर श्रीराम और महाबली श्रीकृष्ण शक्ति और सामर्थ्य में गहन-गंभीर हैं। भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है।


सागर-मंथन करने पर उसमें से विष निकला था। प्रश्र था कि उस विष को कौन कहां रखे? यदि विष पेट के भीतर जाता है तो मनुष्य को मार डालता है, बाहर रहता है तो संसार का अहित करता है। भगवान शिव ही ऐसे सर्वसमर्थ थे, जो उस विष को धारण  कर सकते थे। उन्होंने उसे अपने कंठ में रख लिया। उसके प्रभाव से वह नीलकंठ वाले हो गए। यह नीलवर्ण उनके महादेवत्व एवं अतिशय कारुण्य को स्पष्ट करता है।


शिव को महादेव-अर्थात सबसे अधिक पौरुषवान देवता कहा गया है। ये आशुतोष कहे जाते हैं। ये इतने बल और पौरुष वाले हैं कि सर्प भी इनके आभूषण बने हुए हैं। ब्रह्मांड इनका लिंग है-ज्ञापक है। उनका ब्रह्मा, विष्णु भी पार नहीं पा सके हैं। इतने बल, पौरुष और पराक्रम को प्रकट करने वाला यह नीला रंग है।


नीला रंग और रोग निवारण 
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी रंग के प्रभाव को रोगियों पर जांचने के लिए बार-बार परीक्षण किए हैं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि जिन रोगियों को शांति एवं शीतलता की आवश्यकता थी, उनके लिए नीले रंग से पुते, नीले पर्दे रंगे कमरे अधिक लाभदायक सिद्ध हुए। मानसिक रोगियों को तो इससे विशेष रूप से राहत मिली।


रोगों के प्रभाव पर गंभीर शोध करने वाले ‘हावर्ड कीच’ का कहना है कि ‘‘उपयुक्त रंग हमें ताजगी, स्फूर्ति प्रदान करते हैं, जबकि अनुपयुक्त रंगों से उद्विग्नता उत्पन्न होती है और थकान आती है। आहार में जो महत्व स्वाद का है वह ही दृष्टि क्षेत्र में रंगों का है। ये मात्र नयनाभिराम ही नहीं होते, वरन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालते हैं।’’


यह रंग ठंडा, शांतिदायक और आकर्षक है। यह शरीर की उष्णता को शांत करता है। रक्तपित्त, ज्वर, दाह, उन्माद, हिस्टीरिया में यह रंग अपना गुण दिखाता है। उन्माद या हिस्टीरिया के रोगी के चेहरे पर आसमानी रंग का प्रकाश डाला जाए तो उसका रोग बहुत कुछ शांत पड़ जाता है। 


गर्मी के दिनों में आसमानी रंग की बोतल का पानी पीने से मन को बड़ी शांति मिलती है। इसी रंग की बोतल का पानी अगर कुत्ते को पिलाया जाए तो उसके पागल होने का डर कम हो जाता है। इस रंग की बोतल का पानी हैजा, अतिसार, ऐंठन, वमन, चेचक के रोगों में बहुत लाभ पहुंचाता है। मलेरिया, पांडु और तिल्ली के रोग में इस रंग की बोतल में पानी रखना और उसको रोगी को पिलाना बहुत ही लाभकारी है। वैज्ञानिकों ने आसमानी रंग का प्रयोग कर अनिद्रा रोग, धातु पतन, उपदंश, सिर के बालों का झडऩा, हाथ-पैरों का फटना, सिरदर्द, कामोन्माद, योनि सूजन, गर्भवती का वमन आदि शांत करने में सफलता प्राप्त की है।


नीले रंग की रश्मियों को चयापचय को बढ़ाने वाला माना जाता है। मस्तिष्क की उच्चतम स्थिति अर्थात अंत:प्रज्ञा को जगाने की क्षमता इस रंग में विद्यमान है। त्वचा के जलने पर प्राय: इसी रंग द्वारा उपचार व्यवस्था बिठाई जाती है जबकि जम्बूकी नीला प्रकाश मोटर तंत्रिकाओं, लिम्फैटिक तथा हृदय तंत्र को हतोत्साहित करता है। 


अधिकतर इसका प्रयोग रक्त कणिकाओं के परिशोधन में किया जाता है। बैंगनी रंग शरीर में पोटाशियम का संतुलन बनाए रखने की क्षमता रखता है। इसके प्रभाव से ट्यूमर का विकास रुक जाता है। अति तीव्र भूख लगने को भी बैंगनी रंग रोकता है। बैंगनी रंग में अधिकांश भाग नीले रंग का होता है।


‘कीच’ के प्रयोग प्रकाशन में कितनी ही ऐसी घटनाओं का उल्लेख है जिससे रंगों की प्रभाव क्षमता पर प्रकाश पड़ता है। एक कैंटीन को उन्होंने नीले रंग से पुतवाया जिससे पानी पीने के लिए आने वाले लोग ठंडक लगने की शिकायत करने लगे। जब उसी कैंटीन को उसी ऋतु में नारंगी रंग से रंगवा दिया गया तो ठंडक लगने की शिकायत दूर हो गई और ग्राहक ऋतु बदलने की चर्चा करने लगे। गर्मी के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों में नीले रंग का उपयोग ठीक है उससे शीतलता अनुभव होती है और शांति मिलती है। लू लगने, जलन, बुखार  सिरदर्द जैसे उष्णता प्रधान रोगों में नीले रंग की वस्तुओं का उपयोग किया जाए तो इससे रोग निवारण में सहायता मिलेगी। 

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