बृहस्पतिदेव के व्रत व पूजन से होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Nov, 2017 01:17 PM

by fasting and worship of jupiter all the good will be fulfilled

प्राचीन काल में एक बहुत ही निर्धन ब्राह्माण रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। वह नित्य भगवान विष्णु का पूजा-पाठ करता परंतु उसकी स्त्री बहुत मलिन स्वभाव की थी। वह न स्नान करती न किसी देवी-देवता का पूजन करती। इस कारण ब्राह्माण बहुत परेशान और दुखी रहता।

प्राचीन काल में एक बहुत ही निर्धन ब्राह्माण रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। वह नित्य भगवान विष्णु का पूजा-पाठ करता परंतु उसकी स्त्री बहुत मलिन स्वभाव की थी। वह न स्नान करती न किसी देवी-देवता का पूजन करती। इस कारण ब्राह्माण बहुत परेशान और दुखी रहता। वें अपनी स्त्री को बहुत समझाता लेकिन वो कुछ न सुनती। लेकिन ब्राह्माण देवता पहले की भांति ही रोजाना नियाम से पूजा-पाठ करता। भगवान की कृपा ब्राह्माण के यहां एक दिन कन्या उत्पन्न हुई। कन्या बड़ी होने लगी। बड़ी होने पर वह कन्या नित्य प्रात: स्नान करके वह भगवान विष्णु का जप करती और  बृहस्पतिवार का व्रत भी करती। पूजा-पाठ समाप्त कर पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भर कर ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। लौटते समय वे सारे जौ स्वर्ण के हो जाते तो उन्हें बीन कर घर ले आती, उन्हें सूप में फटक कर साफ कर लेती।

 

 

एक दिन वह बालिका सूप में सोने के जौं को फटक कर साफ कर रही थी कि तभी उसकी मां ने देखा और कहा कि, "हे बेटी! सोने के जौ को फटकने के लिए तो सूप भी सोने का ही होना चाहिए।" दूसरे दिन गुरुवार था। कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पतिवार से प्रार्थना की कि अगर मैंने सच्चे मन से आपकी पूजा की है तो मुझे सोने का सूप दिला दीजिए। भगवान ने उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। रोजाना की तरह वह जौ फैलाती हुई पाठशाला गई। जब वह पाठशाला से लौटकर जौ बीन रही थी तो उसे सोने का सूप मिल गया। लेकिन उसकी मां का फिर भी वही ढंग रहा। एक दिन की बात है कि कन्या ने सोने के सूप में जब जौ साफ कर रही थी, उस समय उस नगर का राजकुमार वहां से गुजरा। कन्या के रूप शील गुणों को देखकर वह उस पर मोहित हो गया। राजमहल जा कर उसने अन्न जल त्याग दिया और उदास होकर शय्या पर लेट गया।

 


 जब राजा को राजकुमार के अन्न-जल त्याग के बारे में ज्ञात हुआ तो वह अपने मंत्रियों के साथ अपने पुत्र के पास गया और उसकी उदासी का कारण पूछा। राजकुमार ने राजा को बताया कि मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में सोने के जौ साफ रप रही थी। राजा को यह कर सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। उसने मंत्री को ब्रह्माण के समक्ष राजा की ओर से निवेदन करने को भेजा। कुछ ही दिन बाद ब्रह्माण ने विधि पूर्वक अपनी कन्या का विवाह राजकुमार के साथ कर दिया। कन्या के घर से जाते ही ब्रह्माण पहले की तरह गरीब हो गया। एक दिन दुखी होकर ब्रह्माण अपनी पुत्री से मिलने गया। पुत्री ने पिता को दुखी होने का कारण पूछा तो ब्रह्माण ने सारा हाल बता दिया। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा किया। इससे ब्रह्माण का कुछ समय सुखपूर्वक बीता लेकिन फिर वही हाल हो गया।

 


ब्रह्माण फिर अपनी कन्या के पास गया और सारा हाल बताया। पुत्री ने अपने पिता को कहा कि आप माता जी को यहां लिवा लाईए। मैं उनको विधि बता दूंगी जिस से हमेशा के लिए आपकी गरीबी दूर हो जाएगी। ब्रह्माण अपनी पत्नी को लेकर अपनी पुत्री के घर आ गया। पुत्री ने मां को समझाते हुए कहा कि मां अाप सुबह उठकर सबसे पहले स्नान आदि करके भगवान विष्णु का पूजन किया करो, तो तुम्हारे घर की सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। उसकी मां ने उसकी एक न मानी। वह प्रात: उठकर अपनी पुत्री की बची झूठन खा लेती। इससे बाह्माण की पुत्री को बड़ा गुस्सा आया। उसने रात में एक कोठरी से सारा सामान निकाल कर अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। सुबह अपनी मां को निकलवा कर पूजा पाठ कराया तो उस ब्रह्माणी की बुद्धि ठीक हो गई। अब वह नियम से पूजा-पाठ करती और भगवान विष्णु या प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत भी रखती। इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्माणी मृत्यू के बाद स्वर्ग को गई। ब्रह्माण भी इस लोक का सुख भोग कर स्वर्ग को प्राप्त हुआ।  

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