Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Mar, 2018 12:31 PM
हम अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र होते हैं। अब यह बात हमारे ऊपर है कि हम इसे अनुशासित तरीके से और दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हुए जिएं या अपनी मर्जी के अनुसार बिना लोगों की परवाह किए। यानी स्वेच्छा का जीवन जिएं।
हम अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र होते हैं। अब यह बात हमारे ऊपर है कि हम इसे अनुशासित तरीके से और दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हुए जिएं या अपनी मर्जी के अनुसार बिना लोगों की परवाह किए। यानी स्वेच्छा का जीवन जिएं।
मानव जीवन हमें उपहार में मिला है। हमें ईश्वर-प्रदत्त इस उपहार को इतना सजा कर रखना चाहिए कि यह दूसरों को भी सुंदर लगे। जब तक हमारे अंदर दूसरों के लिए प्रेम, दया, करुणा का भाव विकसित नहीं होगा तब तक हम चाहे कितने भी धनी, ज्ञानी हों, अच्छे इंसान नहीं कहे जा सकते।
बनावटी जिंदगी अच्छी नहीं होती। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो घर या समाज से बाहर सभ्य और सुसंस्कृत दिखने के प्रयास में उपहास के पात्र बन जाते हैं। इसका मुख्य कारण यही होता है कि वे अपनी मौलिकता को छोड़ देते हैं। हम जैसे हैं, वैसे ही दिखें। इतना अवश्य है कि अपनी वाणी पर संयम रखें। अनावश्यक बोलने में हम असंबद्ध तो होते ही हैं, आलोचनात्मक भी हो जाते हैं।
परोपकार जीवन को सबसे अधिक सुंदर बनाता है। परोपकारी को सभी प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखते हैं। जीवन में स्वार्थपरता जितनी कम होगी, जीवन उतना ही सुंदर होगा। सुशिक्षित और आर्थिक रूप से सबल व्यक्ति भी स्वार्थी और लोभी होने पर अच्छी दृष्टि से नहीं देखे जाते।
हमें प्रकृति से सीख लेनी चाहिए। प्रकृति कितनी उदारमता होती है। समूची प्रकृति ही प्राणिमात्र के कल्याण के लिए सृजित होती है। सूरज हमारे लिए ही आलोक बिखेरता है और चंद्रमा हमें अपनी शीतल रोशनी देता है। नदियां दूर-दूर तक जाकर अपने जल से खेतों को सींचती हैं। वृक्ष अपने फल कहां खाते हैं? सीख लेने की बात यह है कि हम प्रकृति के साथ क्रूरता का व्यवहार करते हैं फिर भी वह हमारे प्रति उदार बनी रहती है। प्रकृति के नजदीक रहकर हमें अपने जीवन में उसी जैसा उदारभाव लाने और उसी जैसा सहनशील बनने की प्रेरणा मिलती है।