जानिए श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं, होगा विश्व का कल्याण

Edited By ,Updated: 13 Nov, 2016 01:10 PM

chaitanya mahaprabhu

कृते यद्धयातो विष्णुम त्रैतायाम यजतोमरवै द्वापर परिचर्याम कल्लौ तदहरिकीर्तनाम

कृते यद्धयातो विष्णुम त्रैतायाम यजतोमरवै
द्वापर परिचर्याम कल्लौ तदहरिकीर्तनाम

 

सतयुग में ध्यान के द्वारा, त्रेता में यज्ञ द्वारा, द्वापर में अर्चना के द्वारा जो पुरुषार्थ लाभ होता है वह अब कलियुग में श्री हरिकीर्तन द्वारा प्राप्त हो सकता है। जो किसी काल में या समय में अर्थात् सत्य,त्रेता, द्वापर आदि युगों में नही दिया गया, वही अमूल्य उन्नत -उज्जवल कृष्ण-प्रेम रस रूप सम्पत्ति-नाम संकीर्तन जगत को प्रदान किया।
                   

कलियुग धर्म है नाम संकीर्तन
एतदर्थें अवतीर्ण श्री शचीनंदन

 

नदनंदन श्रीकृष्ण ही श्रीराधारानी के भाव और माधुर्य रस को लेकर जो पूर्ण में किसी को नहीं दिया गया, वही उन्नत-उज्जवल रस सभी साधारण लोगों को देने के लिए कलियुग की प्रथम संध्या में श्रीगौर सुन्दर, श्री धाम मायापुर, नवद्वीप, जिला नदीया, पश्चिम बंगाल में सन 1486 की फाल्गुनी पूर्णिमा तिथि में संध्या काल में अवतीर्ण हुए थे। पिता श्री जगन्नाथ मिश्र तथा श्री माता शची देवी को अवलंम्वन कर श्री चैतन्य देव ने श्री कृष्ण प्रेम की अप्राकृत परम कल्याणमय कार्य किया इसलिए प्रतिवर्ष फाल्गुणी पूर्णिमा तिथि में उनके जन्म दिवस (अविर्भाव) के उपलक्ष्य में भारत ही नही अपितु पुरे विश्व में उनके द्वारा प्रचारित श्री हरीनाम -संर्कीतन के साथ उनका दिव्य जन्मोत्सव मनाया जाता है। श्री चैतन्य महाप्रभु जी का जन्म श्री गंगा जी के तट पर उस समय हुआ जब चन्द्रग्रहण के समय असंख्यक लोग भागीरथी में स्नान कर रहे थे तथा सभी जगह हरि बोल, हरि बोल, शब्द गुजाएमान हो रहा था।

 

व्रजेन्द्रनंदन श्री कृष्ण जोकि भक्ति भाव को लेकर अपने ही माधुर्य का आस्वादन करने व युगधर्म श्री हरीनाम संकीर्तन का प्रचार करने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु जी के रूप में अवतरित हुए। श्री चैतन्य महाप्रभु जी को अनेकों नामों जैसे श्री गौर हरि, श्री गौरांग, श्री गौर नारायण, श्री चैतन्य देव, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु व बचपन के नाम श्री निभाई इत्यादी से भी पुकारा जाता है।

 

कलियुग के युगधर्म श्री हरिनाम संकीर्तन को प्रदान करने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने अपने पार्षदों श्री नित्यानंद प्रभु, श्री अद्धैत, श्री गदाधर, श्री वास आदि भक्तवृंद के माध्यम से जीवों के कल्याण हेतु गांव-गांव, नगर-नगर, शहर-शहर आदि जाकर श्री हरिनाम संकीर्तन का प्रचार व प्रसार की शिक्षा दी। 

 

नमो मद्यवदान्याय कृष्णप्रेमप्रदायते
कृष्णाय कृष्णचैतन्यनाम्ने गौरत्विषे नमः 

 

श्री रूप गोस्वामी महान वैष्णव सत जी ने श्री गौर सुन्दर के प्रणाम मंत्र में कहा है- हे, दाताशिरोमणी, कृष्ण प्रेम प्रदाता, श्री कृष्णचैतन्य नाम धारी अर्थात् श्रीकृष्ण अभिन्न, सर्व अवतारी, दयालु, गौर कान्ति कृष्णा आपको नमस्कार है।

 

श्री वृंदावन धाम को उजागर करने वाले, पतितों का नाम संकीर्तन द्वारा उद्धार करने वाले श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने बहुत सी शिक्षाएं मानव जाति तथा समस्त प्राणियों के उद्धार के लिए दी। श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने मानव प्राणियों के उद्धार के लिए शिक्षाएं दी हैं। जो पूरे विश्व को देन है। श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने शिक्षाएं विश्व के कल्याण हेतु प्रदान की जो इस प्रकार है- 

 

प्रथम शिक्षा: श्री हरिनाम का महात्म बताते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु कहते है कि श्री कृष्ण नाम संकीर्तन चित रुपी दर्पण को साफ करने वाला, संसारिक दावानल को समाप्त वाला, कल्याणकारी, जीवनरूप, अानन आन्नद देने वाला, पूर्ण का अास्वादन करने वाला, आंतरिक पाप वृति व जन्म मृत्यु के चक्कर से हमेशा के लिए छुटकारा दिलवाने वाले त्रिकृष्ण नाम संकीर्तन की जय हो।

 

द्वितीय शिक्षा: जीवों की भिन्न रूचियों को रखने के लिए हे भगवान आपने अपने मुकुन्द, माधव, गोविन्द, दामोदर, श्यामसुन्दर, घनश्याम, यशोदानंद इत्यादि नाम रखे ओर प्रत्येक नाम में अपनी पूरी शक्ति भी स्थापित कर दी। नाम लेने के लिए देश-काल, शुद्धाशुद्धी का नियम बंधन तोड़ दिया लेकिन मेरा आपके नामों में अनुराग नहीं हुआ। आप कृपा करें कि आपके नामो में मेंरी रूची हो सके।

 

तीसरी शिक्षा: संसार के जीवों को अपने घंमड, अहंम को समाप्त करके घास के तिनके जैसा निम्न समझना चाहिए अर्थात घमंड छोडकर, पद प्रतिष्ठा छोड़कर विनम्र स्वभाव होना चाहिए। पेड़ से भी अधिक सहनशील होकर, खुद सम्मान की चाहना न रखते हुए सदा श्री हरीनाम संकीर्तन करना चाहिए।

 

चौथी शिक्षा: हे जगदीश आप ऐसा अार्शीवाद दें कि मेरे में अत्यधिक धन, बहुत जन, पाडिंत, सुंदरी आदि की चाहना न हो और अापके श्री चरणकमलों मेरी जन्म-जन्म तक अहैतुकी भक्ति रहें।

 

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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