Edited By ,Updated: 29 Dec, 2016 04:09 PM
बच्चों के लालन पालन में छोटी सी गलती बच्चे की जिंदगी तबाह कर सकती है। हर माता-पिता प्रयास करता है कि वह बच्चे का पोषण ऐसे करे ताकि उसमें सदगुणों का समावेश
बच्चों के लालन पालन में छोटी सी गलती बच्चे की जिंदगी तबाह कर सकती है। हर माता-पिता प्रयास करता है कि वह बच्चे का पोषण ऐसे करे ताकि उसमें सदगुणों का समावेश हो सके। आचार्य चाणक्य ने बच्चों के पालन-पोषण से संबंधित कुछ बातों का उल्लेख किया है।
पाँच वर्ष लौं लालिये, दस सौं ताड़न देइ।
सुतहीं सोलह बरस में, मित्र सरसि गनि लेइ।।
इस श्लोक में चाणक्य ने बताया है कि पांच साल तक बच्चे को प्यार अौर दुलार करना चाहिए। इस अवस्था में बच्चा अबोध होता है। इस अवस्था में उन्हें किसी चीज का बोध न होने के कारण कोई गलती करने पर भी गलती की संज्ञा नहीं दी जा सकती। जैसे-जैसे बच्चे की आयु बढ़ती है उसे चीजों का बोध होने लगता है। रिश्तों के साथ-साथ सांसारिक चीजों के प्रति उसके मन में मोह पैदा होने लगता है।
दस साल का उम्र में वह बाल हठ अौर अन्य कारणों से गलत कार्य करने पर उतारु हो जाता है। इस अवस्था में बच्चे को डांटा जा सकता है। सोलह साल की उम्र में उसे मित्र के समान समझना चाहिए। इस उम्र में यदि वह कोई गलती करता है तो उसे मित्र की भांति समझाना चाहिए।
चाणक्य के अनुसार लालन-पालन के दौरान इन बातों का पालन कर उनके अंदर सदगुणों को आत्मसात करने की क्षमता का विकास होता है। यह उनके जीवन को संयमित अौर सुचारु रखने में सहायक होता है।