कैसे व्यक्तित्व के स्वामी हैं आप देव-दानव, अपने स्वभाव को परखें

Edited By ,Updated: 06 May, 2017 01:42 PM

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एक बार की बात है कि देव-दानवों में विवाद छिड़ा कि दोनों समुदायों में श्रेष्ठ कौन है? इसका फैसला कराने के लिए वे प्रजापति ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। उन्होंने दोनों वर्गों को सांत्वना दी और सम्मानपूर्वक ठहरा दिया।

एक बार की बात है कि देव-दानवों में विवाद छिड़ा कि दोनों समुदायों में श्रेष्ठ कौन है? इसका फैसला कराने के लिए वे प्रजापति ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। उन्होंने दोनों वर्गों को सांत्वना दी और सम्मानपूर्वक ठहरा दिया। दूसरे दिन दोनों बुलाए गए। अलग-अलग स्थानों पर दोनों को भोजन के लिए बुलाया गया। थालियां व्यंजनों से सजी थीं। ब्रह्मा जी ने एक कौतूहल किया। मंत्र शक्ति से दोनों वर्गों को कोहनियों पर से हाथ मुडऩे में अवरोध उत्पन्न कर दिया। भोजन किया जाए तो कैसे? दैत्य वर्ग के सदस्य हाथ ऊपर ले जाते ऊपर से ग्रास पटकते। कोई मुंह में जाता, कोई इधर-उधर गिरता। पूरा चेहरा गंदा हो गया। पानी ऊपर से गिराया तो उसने सारे वस्त्र भिगो दिए। इस स्थिति में उन्हें भूखे रह कर दुखी मन से उठना पड़ा।


यही प्रयोग देव वर्ग के साथ भी हुआ। उन्होंने अपने सहज स्वभाव के अनुसार हल निकाल लिया। एक ने अपने हाथ से तोड़ा उसे दूसरे के मुंह में दिया। दूसरे ने तीसरे के मुंह में। इस प्रकार पूरी मंडली ने उसी तरह की क्रिया अपनाकर भोजन कर लिया। पानी इसी प्रकार एक ने दूसरे को पिला दिया। सभी प्रसन्न थे और पूरा भोजन खाकर उठे। ब्रह्मा जी ने दोनों को बुलाया। कहा, ‘‘तुम लोगों के प्रश्न का उत्तर मिल गया, जो सिर्फ अपने लिए ही सोचता और करता है वह असंतुष्ट रहता है तथा समय-समय पर अपमानित होता है पर जिसे दूसरों के हित का ध्यान है, उसे संतोष भी मिलता है यश भी और सम्मान भी। इस कसौटी पर देव खरे उतरे हैं।’’

 

शिक्षा- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सिर्फ अपना ही ध्यान नहीं रखना चाहिए बल्कि दूसरों का भी उसी तरह ध्यान रखना चाहिए जिस तरह हम अपना रखते हैं। 

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