Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Jan, 2018 11:13 AM
बात उस समय की है जब भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था। एक बालक के अंदर देश-भक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वह उन लोगों की बराबर मदद करता था जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरे तोडने के लिए जी-जान से जुटे थे।
बात उस समय की है जब भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था। एक बालक के अंदर देश-भक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वह उन लोगों की बराबर मदद करता था जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरे तोडने के लिए जी-जान से जुटे थे। उसकी मां ने अपने बेटे को देशभक्ति के रंग में रंगे देखा तो उसे बड़ी खुशी हुई। साथ ही उस मां के मन में यह डर भी समाया हुआ था कि कहीं उसका बेटा पुलिस के हाथ में पड़ जाने पर घबरा न जाए और उन लोगों के नाम पते न बता दे जो छिपकर देश की आजादी के लिए काम कर रहे थे।
एक दिन मां ने लड़के को अपना डर बताया तो उसने बड़ी दृढ़ता से कहा, ‘‘मां! तुम बेफिक्र रहो। मैं घबराऊंगा नहीं।’’ बालक फिर भी बालक था। मां को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह बोली, ‘‘मैं तेरा इम्तिहान लूंगी।’’ इसके बाद मां ने एक दीया जलाया और कहा, ‘‘इस पर अपनी हथेली रख दे।’’ लड़का एक क्षण के लिए भी नहीं झिझका और वह अपनी परीक्षा देने के लिए तैयार हो गया। उसने फौरन अपनी हथेली जलती बत्ती की लौ के ऊपर कर दी। हथेली जलती रही पर उस बालक के मुंह से उफ तक नहीं निकली। वह लगातार मुस्कुराता रहा।
बालक का हौसला देखकर मां का जी भर आया। उसने उसे सीने से लगा लिया और दिल खोलकर आशीर्वाद दिया। लड़का अपने काम में दोगुने उत्साह से जुट गया। आगे चलकर यही लड़का अशफाक उल्ला खां भारत का महान क्रांतिकारी बना। जब काकोरी केस में अशफाक उल्ला को फांसी की सजा मिली और उसके गले में रस्सी का फंदा डाला गया, तब वह ऐसे प्रसन्न था मानो उसके जीवन की सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई हो। वह हंसते हुए गाता था, ‘‘हे मातृभूमि, तेरी सेवा किया करूंगा, फांसी मिले मुझे या हो जन्म-कैद मेरी, बंसी बजा-बजाकर तेरा भजन करूंगा।’’