Sawan: आइए करें भगवान शिव के ससुराल की यात्रा, 1 महीने तक रहेंगे यहां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Jul, 2020 09:02 AM

dakshayswar mahadev temple in haridwar

दक्षेस्वर महादेव मंदिर हरिद्वार के समीप बसे कनखल में स्थित है। वैसे तो यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन इस मंदिर का नाम उनकी पहली पत्नी सती के पिता राजा दक्ष प्रजापित के नाम पर है।

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Dakshayswar Mahadev Temple: दक्षेस्वर महादेव मंदिर हरिद्वार के समीप बसे कनखल में स्थित है। वैसे तो यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन इस मंदिर का नाम उनकी पहली पत्नी सती के पिता राजा दक्ष प्रजापित के नाम पर है। इस मंदिर का निर्माण रानी दनकौर ने 1810 ई में करवाया था। इसके पश्चात 1962 में  पुनः इसका निर्माण हुआ। पुराणों के मतानुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। उनकी पुत्री सती ने अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध भगवान शंकर से विवाह किया था। माता सती और भगवान शंकर के विवाह उपरांत राजा दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा।

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फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था।

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यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान को सहन न कर पाई उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।


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जब भगवान शिव को माता सती के प्राण त्यागने का ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में आकर वीरभद्र को दक्ष का यज्ञ ध्वंस करने को भेजा। उसने दक्ष का सिर काट दिया।

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सभी देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवान शिव ने अपने ससुर राजा दक्ष को जीवन दान दिया और उन्हें बकरे का सिर लगा दिया। राजा दक्ष ने भगवान शिव से क्षमा याचना करी। 


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वैदिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव श्रावण मास में अपनी ससुराल कनखल में पूरे एक माह तक रहते हैं। कनखल में उनके प्रवास पर सभी देवी-देवता, पक्ष, गंधर्व, नवग्रह पराशक्तियां और सभी शिवगण भी भगवान भोलेनाथ के साथ पृथ्वी पर आ जाते हैं। यज्ञ कुण्ड के स्थान पर दक्षेस्वर महादेव मंदिर का निर्माण हुआ तथा मान्यता है कि आज भी यज्ञ कुण्ड मंदिर में अपने स्थान पर ही स्थापित है। मंदिर के समीप गंगा किनारे ‘दक्षा घाट‘ है, जहां मंदिर में आने वाले श्रद्धालु स्नान करते हैं। राजा दक्ष के इस यज्ञ का वर्णन वायु पुराण में भी किया गया है।

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