जवानी में करेंगे ये काम, मृत्यु के समय होगा सौ बिच्छुओं के डंक जितना कष्ट!

Edited By ,Updated: 18 Nov, 2016 10:38 AM

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मृत्यु मानव जीवन का अटल सत्य है, जिसे कोई झुठला नहीं सकता। ध्यान और तप के बल पर व्यक्ति की उम्र लंबी तो हो सकती है लेकिन

मृत्यु मानव जीवन का अटल सत्य है, जिसे कोई झुठला नहीं सकता। ध्यान और तप के बल पर व्यक्ति की उम्र लंबी तो हो सकती है लेकिन वो अमर नहीं हो सकता। गरुड़ पुराण के अनुसार जब किसी प्राणी की मृत्यु का समय पास आता है तो यमराज के दो दूत मरन अवस्था में पड़े प्राणी के पास आ जाते हैं। पापी मनुष्य को यम के दूतों से भय लगता है। जिन लोगों ने जीवन भर अच्छे कर्म किए होते हैं उन्हें मरने के समय अपने सामने दिव्य प्रकाश दिखता है और उन्हें मृत्यु से भय नहीं लगता। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं।


जिस जीव ने धरती पर जन्म लिया है, उसे एक दिन जाना भी है। कहते हैं अंतिम वक्त पर जब आत्मा शरीर का त्याग करती है, तो उस समय सौ बिच्छुओं के डंक जितना कष्ट झेलना पड़ता है। जवानी में यदि अच्छे कर्म करके अपनी आत्मा को पवित्र और स्वच्छ रखेंगे तो मृत्यु के समय होने वाले कष्ट से बचा जा सकता है। 


* सर्वप्रथम अपने लाइफस्टाइल में सुधार लाएं, यदि आप रात को देर तक जागते रहते हैं और सुबह देर से जगते हैं तो आप अपने स्वास्थ्य के साथ तो खिलवाड़ कर रहे हैं। आत्मा के कारक देव भगवान सूर्य नारायण का भी अपमान होता है। अंतिम समय में काया को अनेको व्याधियां झेलनी पड़ती हैं। प्रात: जल्दी उठकर सूर्य नमस्कार करें और अर्ध्य दें। 


* शास्‍त्र कहते हैं ब्रह्मचर्य का पालन करने से तन और मन स्वस्थ रहते हैं। जो लोग जवानी के जोश में दिन और समय का ध्यान रखे बिना स्त्री संग अधिक करते हैं, उनकी आत्मा पर पाप लगता है। मृत्यु के समय इस लोक में और परलोक सिधारने पर उस लोक में यातनाएं सहनी पड़ती हैं।


* मद‌िरा का सेवन मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। नशे में रत होकर वह गलत काम करने लगता है। जिसका खामियाजा उसे लोक-परलोक में उठाना पड़ता है।


* धार्मिक दृष्टि से आहार शुद्ध और पवित्र होना आवश्यक है। उपनिषदों में कहा गया है कि ‘जैसा अन्न वैसा मन’ अर्थात हम जैसा भोजन करते हैं, उसी के अनुसार हमारा मानसिक विकास होता है। भोजन करते समय किसी भी अपवित्र खाद्य पदार्थ को ग्रहण करना निषिद्ध है। यही कारण है कि भोजन करने से पूर्व भगवान को भोग लगाने का विधान है जिससे कि हम केवल शुद्ध और उचित आहार ही ग्रहण करें। श्रीमद्भागवद गीता के अनुसार सात्विक भोजन करने वाला दैवी सम्पत्ति का स्वामी होता है जबकि राजसिक और तामसिक भोजन करने वाला आसुरी सम्पत्ति का मालिक होता है। 

 

* नास्तिक और वैष्णव निंदा करने वाला न केवल अपने जीवनकाल में दुख भोगता है बल्कि मृत्यु के समय और मरणोपरांत भी पीड़ा में रहता है।


* जो व्यक्ति अपने जन्मदाता (माता-पिता) को दुख देता है, उनका आदर-सम्मान नहीं करता। यमराज उन्हें घोर यातना देते हुए मृत्यु के द्वार तक ले जाते हैं।


* जो लोग जवानी में अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए छल कपट और बेईमानी का रास्ता चुनते हैं। वह जीवन भर तो सुखी रहते हैं लेकिन अंत समय उन्हें बहुत यातनाएं सहनी पड़ती हैं। वह मृत्यु को पुकारते हैं लेकिन यम उन्हें असहनीय दर्द देते हैं।
 

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