मथुरा के नंदगांव में जलाया जाता है पांच किलो गाय के घी से दीपक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Oct, 2017 11:24 AM

deepawali special in mathura

देश के कोने-कोने में दीपावली मनाने की लगभग एक सी परंपरा है, लेकिन तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में मंदिरों में दीपावली का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। दीपावली पर कहीं ठाकुर जी चौसर खेलते हैं,

देश के कोने-कोने में दीपावली मनाने की लगभग एक सी परंपरा है, लेकिन तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में मंदिरों में दीपावली का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। दीपावली पर कहीं ठाकुर जी चौसर खेलते हैं, कहीं सकड़ी और निकरा के भोग लगते हैं, कहीं 36 व्यंजन अर्पित किए जाते हैं। नंदगांव में नंद जी के आंगन में निराली दिवाली है को चरितार्थ करने के लिए पहले नंदबाबा मंदिर के शिखर पर अनूठा दीपक जलाया जाता है। यहां पांच किलो गाय के घी से दीपक जलाया जाता है।  


नंदबाबा मंदिर के सेवायत आचार्य लोकेश गोस्वामी ने बताया कि इसके लिए एक ऐसा दीपक बनाया जाता है जिसमें पांच किलो शुद्ध गाय का घी आ सके। इसमें बिनौला आदि डालकर विशेष रूप से तैयार करते हैं। इसे 200 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर जलाया जाता है। इस दीपक के संबंध में मंदिर के एक अन्य सेवायत सुशील गोस्वामी ने बताया कि उनके बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि बहुत पहले मंदिर के शिखर पर इतना बड़ा दीपक जलाया जाता था कि उसकी लौ को भरतपुर में देखकर वहां के राजघराने में दीपावली मनाई जाती थी। इसी परंपरा का आज भी नन्दगांव में निर्वाह किया जा रहा है। 


मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान में तो छोटी दीपावली से ही मंदिरों में न केवल दीपावली की धूम मच जाती है बल्कि जन्मस्थान स्थित मंदिरों में दीपावली का पर्व सामूहिक दीपावली के रूप में मनाया जाता है। मंदिर के जनसंपर्क अधिकारी विजय बहादुर सिंह के अनुसार मंदिर प्रांगण में बहुत बड़ी रंगोली बनाकर उसके चारों ओर 21 हजार दीपक जलाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पहले केशव देव मंदिर में दीपक जलाया जाता है और फिर जन्मस्थान पर स्थित अन्य योगमाया, राधाकृष्ण आदि मंदिरों में दीपक जलाते हैं तथा सबसे अंत में रंगोली के चारो तरफ 21 हजार दीपक जलाते हैं। इसमें ब्रजवासियों के साथ-साथ तीर्थयात्रियों को भी शामिल किया जाता है क्योंकि ठाकुर जी सबसे अधिक सामूहिक आराधना में ही प्रसन्न होते हैं।  


राधाश्यामसुन्दर मंदिर वृन्दावन के सेवायत आचार्य कृष्णगोपालानन्द देव गोस्वामी प्रभुपाद के अनुसार इस दिन ठाकुर जी कृष्णकाली वेश में दर्शन देते हैं यानी मां काली के वेश में दर्शन देते हैं। इस दिन मंदिर में आकाश दीप के साथ-साथ पूरे मंदिर परिसर में दीप जलाते हैं तथा अगले दिन अन्नकूट में 56 भोग 36 व्यंजन बनते हैं। गाय के गोबर से विशाल गिरिराज बनाकर पूजन होता है तथा शाम को भंडारे में व्रजवासी और तीर्थयात्री प्रसाद ग्रहण करते हैं। 


दीपावली की शाम मंदिर में जो लोग दीपक जलाते हैं उन्हें न केवल ठाकुर का विशेष आशीर्वाद मिलता है बल्कि उन पर लक्ष्मी की भी विशेष कृपा होती है। उन्होंने बताया कि चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव दिवस होने के कारण इस दिन अष्टप्रहर तक हरिनाम संकीर्तन भी होता है। 


राधा दामोदर मंदिर वृंदावन के सेवायत आचार्य कनिका गोस्वामी ने बताया कि दीपावली पर दाम बंधन लीला का पाठ किया जाता है। इसी दिन मां यशेादा ने मक्खन की चोरी करने पर श्यामसुन्दर को ऊखल से बांधा था। मंदिर में शाम को जहां दीपदान होता है वहीं प्रात: सवा चार बजे से गिरिराज शिला की चार परिक्रमा शुरू हो जाती हैं। इस शिला को ठाकुर जी ने स्वयं सनातन गोस्वामी को दिया था। वृन्दावन के सप्त देवालयों में मशहूर राधा रमण मंदिर में इस दिन ठाकुर जी हटरी पर विराजमान होते हैं तथा संध्या काल में राधारानी के साथ ठाकुर चैसर खेलते हैं। दीपावली के दिन संध्या आरती के बाद जगमोहन में लक्ष्मी पूजन होता है तथा अंदर ठाकुर जी का तिलक होता है।

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