Edited By ,Updated: 29 Mar, 2017 12:52 PM
सिपाहियों की एक टोली युद्ध-क्षेत्र में काम पर लगी थी। वह एक भारी-भरकम लट्ठ को उठाने का प्रयास कर रही थी ताकि
सिपाहियों की एक टोली युद्ध-क्षेत्र में काम पर लगी थी। वह एक भारी-भरकम लट्ठ को उठाने का प्रयास कर रही थी ताकि उसकी मदद से किले की दीवार गिराई जा सके। सिपाहियों से दूर खड़ा एक नायक उन्हें आदेश दे रहा था कि ऐसे नहीं वैसे उठाएं, जरा और जोर लगाओ। इतने में एक अनजान घुड़सवार व्यक्ति वहां से गुजरा। उसने नायक से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि यदि तुम भी उनकी मदद करो तो इस लट्ठ को उठाना आसान हो जाएगा। क्यों नहीं तुम भी इन लोगों की मदद करते?’’
नायक ने कहा, ‘‘यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है। मैं एक नायक हूं। लट्ठ को उठाना उनका काम है। मेरा काम यह देखना है कि वे इसे ठीक से उठा रहे हैं या नहीं।’’
यह सुनकर वह अनजान व्यक्ति घोड़े से उतरा और उन सिपाहियों की टोली के साथ मिलकर लट्ठ उठाने में जुट गया। एक अतिरिक्त व्यक्ति की ताकत जुड़ जाने से लट्ठ आसानी से उठा लिया गया। काम पूरा हो जाने के बाद वह अनजान व्यक्ति अपने घोड़े पर चढ़कर आगे बढ़ गया। लेकिन जाते-जाते उसने नायक की ओर मुड़कर कहा, ‘‘अगली बार जब तुम्हें किसी लट्ठ को उठाने की जरूरत पड़े तो अपने सेनापति को बुला लेना।’’
तब जाकर सिपाहियों को बोध हुआ कि वह अनजान व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि उनका सेनापति यानी जॉर्ज वॉशिंगटन था। यही जॉर्ज वॉशिंगटन बाद में अमरीका के प्रथम राष्ट्रपति बने। कई लोग यह सोचते हैं कि वे इतने महान हैं कि घर-गृहस्थी के दैनिक कार्य, श्रमिक वाले कार्य या अपने ऑफिस के पर्दे के पीछे के छोटे-छोटे कार्य नहीं कर सकते हैं। हम अपने आपको ऊंचा और महत्वपूर्ण समझते हैं। इस झूठे अहं को तोडऩा जितना जरूरी है, उतना आसान भी है। सच्चे मन से एक प्रयास करने और उस पर टिके रहने की जरूरत है बस। जब भी मन में यह ख्याल आए कि हम महत्वपूर्ण हैं या अपना अहंकार बढ़ता प्रतीत हो तो उन महान व्यक्तियों के बारे में सोचने लग जाएं जो विनम्र होकर मानवता की सेवा में जुटे रहें। कोई भी इतना महान नहीं होता कि वह अपने पड़ोसी का दु:ख-दर्द नहीं बांट सकता। आखिरकार प्रभु हमें जिंदगी देता है, हमें वह बनाता है जो हम हैं। अगर हम सेनापति के जैसे बन सकें और दूसरों की मदद के लिए अपने घोड़ों से उतर सकें तो प्रभु हम पर भरपूर आशीर्वाद बरसाने के लिए तैयार रहेंगे।