आध्यात्मिक दृष्टिकोण, मन को शांति और सुकून तीनों एक साथ देते हैं ये दर्शनीय स्थल

Edited By ,Updated: 15 Dec, 2016 01:25 PM

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प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति गहरा आकर्षण रखने वाले पर्यटकों के लिए हिमाचल प्रदेश विशेष रूप से मायने रखता है। यहां के सुरम्य स्थानों में प्रमुख है- धर्मशाला, जो कांगड़ा की मनोरम घाटी में स्थित है

प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति गहरा आकर्षण रखने वाले पर्यटकों के लिए हिमाचल प्रदेश विशेष रूप से मायने रखता है। यहां के सुरम्य स्थानों में प्रमुख है- धर्मशाला, जो कांगड़ा की मनोरम घाटी में स्थित है। ‘एक मिनी ल्हासा’, ‘प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना’, ‘पहाड़ों की रानी’ आदि विशेषणों से विभूषित यह रमणीय स्थान समुद्र तल से लगभग तेरह सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। धौलाधार की हिमाच्छादित पर्वत शृंखला, चीड़ के वृक्षों और चाय बागानों के कारण इस स्थान का प्राकृतिक सौंदर्य तथा आकर्षण काफी बढ़ जाता है।


हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा की मनोरम घाटी में स्थित धर्मशाला का सुरम्य प्राकृतिक वातावरण बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यहां स्थित कई ऐसे स्थल हैं जहां पहुंच कर वापस लौटने का विचार तक मन में नहीं आता और लौटने के बाद उनकी स्मृतियां सदैव के लिए मानस पटल पर अंकित होकर रह जाती हैं।


धर्मशाला के प्रमुख दर्शनीय स्थल 
प्राकृतिक जादू : धर्मशाला के दो भाग हैं-ऊपरी और निचला। ऊपरी भाग निचले भाग से लगभग साढ़े चार सौ मीटर ऊंचा है। दो हजार वर्गमीटर क्षेत्र में फैले धर्मशाला में एक ऐसी खूबी है जिसे ‘प्राकृतिक जादू’ कहा जाता है। वह यह है कि यहां धूप, इंद्रधनुष और हिमपात-तीनों एक साथ दिखते हैं।


शहीद स्मारक
चीड़ के ऊंचे, सुंदर और घने पेड़ों के बीच सात एकड़ भूमि में फैला यह शहीद स्मारक उन 1042 शहीदों की याद दिलाता है जो 1947 से 1971 तक विभिन्न लड़ाइयों में देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं। इस स्मारक के पास पिंगल नदी बहती है, जिससे संबंधित कई ऐतिहासिक कथाएं और किंवदंतियां यहां सुनी-सुनाई जाती हैं।


मैक्लोडगंज
यह सच है कि अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण धर्मशाला दूर-दूर तक जाना जाता है, लेकिन यह भी सच ही है कि मैक्लोडगंज के कारण भी इसकी महत्ता और ख्याति में वृद्धि हुई है। यहां आने पर ऐसा लगता है मानो तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंच गए हों। मैक्लोडगंज को ‘छोटा ल्हासा’ तभी से कहा जाने लगा, जब चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा कर लेने के पश्चात हजारों तिब्बतियों ने यहां शरण ली थी।


तपोवन
धर्मशाला से 7 किलोमीटर दूर स्वामी चिन्मयानंद के ‘चिन्मय’ मिशन का संदीपनी आश्रम तपोवन पालमपुर रोड पर स्थित है। सिद्ध बाड़ी गांव से पक्की सड़क द्वारा जुड़़े इस शांत, मगर आकर्षक आश्रम के समीप स्थापित विशाल तथा अद्भुत शिवलिंग दूर से ही दृष्टिगोचर होता है। चीड़ के घने वृक्षों के बीच बसे इस धार्मिक स्थल पर लोग सिर्फ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि मन को शांति और सुकून देने के लिए भी आते हैं।


डल झील
नगर से 10 किलोमीटर दूर स्थित इस अत्यंत ही नयनाभिराम और चित्तकर्षक स्थल को निकट से देखने के बाद लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि यहीं बैठे रहें और इन दृश्यों को निहारते रहें। इस अंडाकार झील के चारों तरफ खड़े देवदार के ऊंचे वृक्षों के प्रतिबिंब जब जल में दिखाई पड़ते हैं तो यहां का प्राकृतिक सौंदर्य कई गुना बढ़ जाता है। झील के पास ही शिव जी का एक मंदिर है। जहां हर साल जन्माष्टमी के15 दिन बाद राधाष्टमी के दिन बड़ा मेला लगता है।


भागसुनाग मंदिर
धर्मशाला से 11 किलोमीटर दूर भागसुनाग का प्राचीन मंदिर स्थित है। यहीं पर अपने कल-कल स्वर से कानों में संगीत का सुर घोलता एक सुंदर झरना भी है। यहीं सामने पहाड़ी पर स्लेटों की खानें हैं। संध्याकाल में जब सूर्य की किरणें इन स्लेटी पत्थरों पर पड़ती हैं तब बहुत ही सुंदर दृश्य उपस्थित होता है।


आसपास के प्रसिद्ध स्थल
धर्मशाला के आसपास भी कुछ दर्शनीय स्थल हैं जिनमें से प्रमुख निम्रलिखित हैं-
त्रिपुंड
धर्मशाला से 17 किलोमीटर दूर 2800 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित यह स्थान हैंग ग्लाइडिंग के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है।


चामुंडा मंदिर
धर्मशाला से 18 किलोमीटर दूर बाणगंगा नदी के तट पर यह मंदिर देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। चारों तरफ से नयनाभिराम धौलाधार पहाडिय़ों से घिरे इस स्थल पर आने के बाद चित्त को अतीव शांति मिलती है।


धर्मकोट 
यह भी धर्मशाला के निकट ही है। यह एक बहुत ही मनोरम पिकनिक स्थल भी है। यहां से कांगड़ा घाटी तथा धौलाधार पर्वत श्रेणियों के सौंदर्य का अवलोकन अच्छी तरह किया जा सकता है।


पहुंचने के साधन
अगर रेल से जाना हो तो पठानकोट पहुंचें क्योंकि धर्मशाला तक कोई सीधा रेलमार्ग नहीं है। पठानकोट से धर्मशाला की दूरी 85 किलोमीटर है। इसे सड़क मार्ग से भी तय किया जा सकता है।
यदि आसपास के किसी स्थान-चम्बा, डल्हौजी आदि से धर्मशाला पहुंचना हो तो वहां से बस या टैक्सी द्वारा पहुंचना आसान है। अगर मसूरी, आगरा या राजपुर से सीधे धर्मशाला जाना हो तो दिल्ली और गग्गल होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। गग्गल से धर्मशाला की दूरी मात्र 13 किलोमीटर है।

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