Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Jun, 2017 03:40 PM
भगवान हमें यह नहीं कहते कि तुम्हें उपवास करना ही है। यह सब तो जातक की इच्छा पर र्निभर करता है। वैज्ञानिक रूप से
भगवान हमें यह नहीं कहते कि तुम्हें उपवास करना ही है। यह सब तो जातक की इच्छा पर र्निभर करता है। वैज्ञानिक रूप से भी शरीर की शुद्धि के लिए व्रत का महत्त्व स्वीकार किया गया है। यदि आपको भूखा रहना मुश्किल लगता है तो यह ग्यारह उपव्रत हैं, जिन्हें आप अपनी दिनचर्या में शामिल करके व्रत करने से भी अधिक पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। जीवन के ये उपव्रत साधक को शरीर के रहते-रहते चिरशांति, जीवन मुक्ति तथा भगवद्भक्ति प्राप्त कराने में सक्षम सिद्ध होते हैं।
आत्म-निरीक्षण अर्थात प्राप्त विवेक के प्रकाश में अपने दोषों को देखना।
की हुई भूल को पुन: न दोहराने का व्रत लेकर सरल विश्वासपूर्वक प्रार्थना करना।
विचार का प्रयोग अपने पर और विश्वास का दूसरों पर अर्थात न्याय अपने पर और प्रेम तथा क्षमा अन्य पर।
जितेंद्रियता, सेवा, भगवद चिंतन तथा सत्य की खोज द्वारा अपना निर्माण।
दूसरों के कर्तव्य को अपना अधिकार, दूसरों की उदारता को अपना गुण और दूसरों की निर्बलता को अपना बल न मानना।
पारिवारिक तथा जातीय संबंध न होते हुए भी पारिवारिक भावना के अनुरूप ही पारस्परिक संबोधन एवं सद्भाव अर्थात कर्म की भिन्नता होने पर भी स्नेह की एकता।
निकटवर्ती जन समाज की यथाशक्ति क्रियात्मक रूप से सेवा करना।
शारीरिक हित की दृष्टि से आहार-विहार में संयम तथा दैनिक कार्यों में स्वावलंबन।
शरीर को श्रमी, मन को संयमी, बुद्धि को विवेकवती, हृदय को अनुरागी तथा अहं को अभिमान शून्य करके अपने को सुंदर बनाना।
सिक्के से वस्तु, वस्तु से व्यक्ति, व्यक्ति से विवेक तथा विवेक से सत्य को अधिक महत्व देना।
व्यर्थ चिंतन-त्याग तथा वर्तमान के सदुपयोग द्वारा भविष्य को उज्ज्वल बनाना।