विचारों के बोझ तले चेतना को न होने दें कैद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Nov, 2017 09:07 AM

do not let the consciousness under the burden of thoughts

हमारी चेतना पर जब विचारों का बहुत बोझ होता है, मन में ऊहापोह होती है तो समझें कि चेतना कैद हो गई है, उस पर ताला लग गया है। इस कैद से परे जाने पर ही आनंद मिल सकता है

हमारी चेतना पर जब विचारों का बहुत बोझ होता है, मन में ऊहापोह होती है तो समझें कि चेतना कैद हो गई है, उस पर ताला लग गया है। इस कैद से परे जाने पर ही आनंद मिल सकता है। जीवन जीने के दो ढंग हैं- एक है चिंतन का, विचार का और दूसरा है अनुभूति। अधिकतर लोग सोच-विचार में उलझ जाते हैं, वे जीते कम हैं क्योंकि वे सोचने को ही जीवन समझ लेते हैं। 


वे बौद्धिकता को ही अनुभव समझ लेते हैं। वे धर्मग्रंथ और दर्शन पढ़ते हैं और समझते हैं कि उन्हें सारा ज्ञान उपलब्ध हो जाएगा। सब सिद्धांतों की जानकारी उन्हें यह भ्रांति भी देती है कि वे ब्रह्मज्ञानी हो गए हैं। इसी भ्रांति के कारण वे दूसरों के साथ ज्ञान बांटने लगते हैं। उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहता कि यह सब ज्ञान उधार का है, बासी है। उधार के ज्ञान से किसी का भी जीवन आलोकित नहीं हो सकता, बल्कि यह डर रहता है कि कहीं अहंकार न घेर ले। 


ऐसे में व्यक्ति जो कुछ भी करता है, वह मन के दायरे में ही होता है। उससे मन के कैदखाने की दीवारें टूटती नहीं, बल्कि और मजबूत होती जाती हैं। प्रश्न यही है कि इस ताले को कैसे खोला जाए। तो अनुभवी व्यक्तियों का निष्कर्ष है कि ध्यान ही वह कुंजी है जिससे यह ताला खुलता है और समाधि ही समाधान है। अपने मन के पार सोचने या जाने का प्रयास ही सारी चीजों से मुक्त करता है। जापान में जेन साधकों की एक विधि है श्वास को शांत करना, उसकी गति को धीमा, और धीमा करते जाना। वह इतना धीमा हो जाता है कि एक मिनट में चार-पांच श्वास तक पहुंच जाता है। इधर श्वास शांत होता है और उधर विचार शांत होने लगते हैं। 


जब आप भय, क्रोध, वासना या किसी प्रकार की उत्तेजना में होते हैं, उस समय गौर करें कि आपका श्वास भी तेज गति से चलने लगता है और आप आपा खो बैठते हैं। श्वास का अस्त-व्यस्त होना आपके भीतर विचारों की महाभारत खड़ी कर देता है। इसलिए जेन साधक अपने विचारों के साथ संघर्ष नहीं करते और न ही उन्हें नियंत्रित करते हैं। निश्चित ही यह अनुभूति का आयाम है।

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