Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Aug, 2017 10:32 AM
एक दिन सुबह के वक्त मालवा नरेश राजा भोज अपने रथ पर बैठकर एक जरूरी कार्य
एक दिन सुबह के वक्त मालवा नरेश राजा भोज अपने रथ पर बैठकर एक जरूरी कार्य से राज्य में कहीं जा रहे थे। 4 श्वेत अश्वों वाला उनका रथ तेजी से राजपथ पर बढ़ा जा रहा था। सहसा महाराजा भोज ने सड़क पर जा रहे एक तेजस्वी ब्राह्मण को देखा और कोचवान से रथ रोकने को कहा। महाराज के आदेश पर कोचवान ने वायुवेग से चलते रथ को रोका तो तेज आवाज के साथ श्वेत अश्व खुर पटकते हुए तुरंत वहीं खड़े हो गए।
राजा भोज रथ से उतरे तथा उन्होंने ब्राह्मण मनीषी को हाथ जोड़कर प्रमाण किया। उन्हें देखते ही ब्राह्मण ने अपने दोनों नेत्र बंद कर लिए। उन्होंने राजा के अभिवादन के उत्तर में आशीर्वाद तक नहीं दिया। इस व्यवहार से आश्चर्यचकित महाराजा भोज ने ब्राह्मण से विनम्रता से कहा, ‘‘आपने मेरे प्रणाम का न उत्तर दिया, न मुझसे आशीर्वाद के शब्द कहे। उल्टा आपने मुझे देखकर अपने दोनों नेत्र बंद कर लिए। इस अनूठे व्यवहार का क्या कारण है।’’
ब्राह्मण बोला, ‘‘महाराज, शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह-सवेरे किसी कृपण के सामने आ जाने पर नेत्र बंद कर लेने चाहिएं।’’ उसका मुख नहीं देखना चाहिए। आप परम वैष्णव तथा प्रजावत्सल नरेश तो हैं परंतु दान देने में कृपणता बरतते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आप इस संसार में सिर्फ लेने आए हैं, जो कुछ लिया उसे चुकाने नहीं। यदि किसी को यश प्राप्त होता है तो उसका मूल्य भी इसी संसार में चुकाना होता है। इसलिए धर्म में दान को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। इसी प्रकार शास्त्र वचन का पालन करते हुए मैंने सूर्योदय से पहले आपका मुख देखना पसंद नहीं किया। शास्त्रज्ञ ब्राह्मण ने निर्भीकता से उत्तर दिया। महाराजा भोज ने उनके समक्ष नतमस्तक होकर अपनी कमी स्वीकार की तथा उसी दिन से गरीबों को मुक्त हाथों से दान देना शुरू कर दिया।