Edited By ,Updated: 10 May, 2017 02:07 PM
वास्तुशास्त्र ऊर्जाओं का महासम्मेलन है। इस ब्रह्मांड में सिर्फ दो ऊर्जाएं व्याप्त हैं। सकारात्मक ऊर्जा व नकारात्मक ऊर्जा। वास्तुशास्त्र एक ऐसा वैज्ञानिक एवं ऊर्जा का शास्त्र है जो समुद्र जैसा ही है। जो
वास्तुशास्त्र ऊर्जाओं का महासम्मेलन है। इस ब्रह्मांड में सिर्फ दो ऊर्जाएं व्याप्त हैं। सकारात्मक ऊर्जा व नकारात्मक ऊर्जा। वास्तुशास्त्र एक ऐसा वैज्ञानिक एवं ऊर्जा का शास्त्र है जो समुद्र जैसा ही है। जो इस वास्तुगंगा में जितनी गहरी डुबकी लगाएगा उतनी ही ऊर्जा के मोती उसके हाथ में आएंगे। वास्तुशास्त्र को जानना है तो ऊर्जा को सबसे पहले जानना होगा। पंचमहाभूत को जानना होगा। अगर ऊर्जा का प्रारंभिक ज्ञान छूटा तो गहरा वास्तुशास्त्र कुछ भी नहीं समझ में आने वाला है। यह पूरा ब्रह्मांड ऊर्जा का बना हुआ है। हमारा शरीर भी ऊर्जा से भरा हुआ है। इस ब्रह्मांड में जब कुछ नहीं था, तब ॐ की ध्वनि की ही ऊर्जा व्याप्त थी। उससे सर्वप्रथम आकाश तत्व की उत्पत्ति हुई, आकाश से वायु, वायु से अग्रि, अग्रि से जल और जल से पृथ्वी तत्व की उत्पत्ति हुई। इसे ही हम पंचमहाभूत कहते हैं।
हम आपने हाथों को देखें तो वहां भी पांच उंगलियां ही हैं तथा एक-एक उंगली पर एक-एक तत्व विराजमान है। हमारे हाथों में समाए पंचतत्व व मध्य में ॐ बना हुआ है इसलिए सारे सिद्धों की ध्यान अवस्था में हथेली आसमान की तरफ खुली हुई रहती है। गहरी ध्यान अवस्था में ब्रह्मांड की शक्तियां हथेली में आकर उंगली के छोर से शरीर में प्रवेश करती हैं जिससे शक्ति का संचार हमारे शरीर में होता रहता है।
इस पूरी धरा पर भवन ही एक ऐसी जगह है जहां ये पांच तत्व पूरी तरह विकसित होते हैं और यह जो भवन का शास्त्र है उसे ही हम वास्तुशास्त्र के रूप में जानते हैं। वास्तु में पांच तत्व होते हैं, इन तत्वों का सही गणित आपके जीवन में सुख, सम्पत्ति व ऐश्वर्य प्रदान करने का एकमेव शास्त्र है वास्तुशास्त्र।
जब आप अपना खुद का कोई भी मकान, दुकान, फैक्टरी खरीदते हैं तो सर्वप्रथम वास्तुशांति अवश्य ही करानी चाहिए अन्यथा आपको भविष्य में बड़े-बड़े संकटों का सामना करना पड़ सकता है। इसमें लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए अन्यथा हानि हमारी ही होती है।