डर से भागे नहीं, डट कर मुकाबला करें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jan, 2018 10:06 AM

do not run away from fear compete with it

डर हमेशा से हमें परेशान करता रहा है। दुनिया के विकास के साथ यह और भी बढ़ा है। बच्चे से बूढ़े, यहां तक कि पशु-पक्षी भी इससे अछूते नहीं हैं

डर हमेशा से हमें परेशान करता रहा है। दुनिया के विकास के साथ यह और भी बढ़ा है। बच्चे से बूढ़े, यहां तक कि पशु-पक्षी भी इससे अछूते नहीं हैं। कवियों ने भय को सांप सरीखा बताया है। भय विषधर की तरह हमें डराता है, मगर मनुष्य उसके विष से कुछ भी नहीं सीखता।


डर के कई कारणों में प्राणों की चिंता के बाद असफलता महत्वपूर्ण है। यह प्रेम, विवाह, संतान, धन, नौकरी आदि विभिन्न रूपों में व्यक्त होती है। आंतरिक डर के अलावा कई बार डर का संबंध प्राकृतिक, सामाजिक या किसी असामान्य स्थिति से भी होता है। बहुत बार दुनिया के किसी इलाके में हुए खून-खराबे की खबर भी डरा देती है। समाज में बढ़ती ङ्क्षहसा, निरंकुशता, शक्ति का दुरुपयोग, असहनशीलता इसे और बढ़ावा दे रही है। डर शक्तिशाली होता जा रहा है।

 

डर हमारी ऊर्जा के साथ इच्छा शक्ति को भी कमजोर करता जाता है। यह प्रेम को खा जाता है, हमें अपनों से भी डराता है। स्वामी विवेकानंद ने डर से बचने का उपाय बताया है। युवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार बनारस में कुछ बंदर उनके पीछे पड़ गए। वह डरकर भागने लगे, बंदर पीछे आते रहे। तभी एक आदमी ने चिल्लाकर उनसे कहा कि भागो मत, खड़े होकर सामना करो, वे भाग जाएंगे। उन्होंने वही किया और बंदर भाग गए। 


अमरीका में हुए अंतर्राष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में विवेकानंद ने कहा था, ‘‘डरो मत, मजबूत बनो, क्योंकि भगवान तुम्हारे साथ चलते हैं। न वे तुम्हें छोड़ेंगे, न टूटने देंगे। हर अनुभव एक शक्ति और साहस देता है। डर की आंखों में देखोगे तो जान लोगे कि ऐसी परेशानियां तो मैं पहले भी भुगत चुका हूं। इसे भी पार कर लूंगा।’’
डर से भागना उपाय नहीं होता, उपाय उसे जीतने में ही है। परीक्षा हो या कोई और काम, डर से निपट कर ही विकास तक पहुंचा जा सकता है। हर धर्म में आस्था और प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण डर की जगह साहस जगाता है। किसी व्यक्ति या साधन के बल पर यह साहस जगाने की कोशिश करने से संदेह बना रहता है कि ये साधन काफी हैं या नहीं। यही नहीं, उन सहारों के हटते ही डर दोगुनी तेजी से लौटता है।
 

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