Edited By ,Updated: 07 Apr, 2017 03:26 PM
एक शाम मशहूर सूफी और दार्शनिक रूमी दरिया किनारे कुछ लिख रहे थे। उनके इर्द-गिर्द उनकी खुद की लिखी किताबों का ढेर लगा था। उस दौर में किताबें हाथ से लिखी
एक शाम मशहूर सूफी और दार्शनिक रूमी दरिया किनारे कुछ लिख रहे थे। उनके इर्द-गिर्द उनकी खुद की लिखी किताबों का ढेर लगा था। उस दौर में किताबें हाथ से लिखी जाती थीं। रूमी इतने ऊंचे दर्जे के विद्वान थे कि उनसे दूर-दूर से लोग पढ़ने आते थे। वह लोगों को पूरी रुचि लेकर पढ़ाते भी थे। उस वक्त रूमी दरिया किनारे खामोशी और मन की गहराइयों से कुछ लिखने में व्यस्त थे कि तभी शम्स तबरेज उनके पास आए। शम्स तबरेज बिल्कुल फटेहाल, उजड़े से बालों के साथ उनके सामने आकर बैठ गए। रूमी ने उनको देख उनका हाल पूछा और फिर लिखने लगे।
शम्स तबरेज ने उनके इर्द-गिर्द ढेर किताबों को देखा। वह रूमी जैसे विद्वान तो नहीं थे, फिर भी पूछ बैठे कि यह क्या है, इनमें क्या है? अपनी विद्वता पर गर्व करने वाले रूमी ने कहा इसमें जो है वह तुम नहीं जानते। यह इल्म है, तुम्हारे बस का नहीं। शम्स तबरेज ने फौरन किताबों को उठाया और दरिया में फैंक दिया। अपनी बरसों की मेहनत को पानी में डूबता देख रूमी चीख पड़े। बोले, यह क्या किया शम्स, मेरी सारी मेहनत तबाह कर दी?
शम्स मुस्कुराए और कहा ठंड रख रूमी और दरिया में हाथ डाल एक किताब निकाली। उसने एक के बाद एक सभी किताबें पानी में हाथ डालकर दरिया से निकाल दीं। रूमी की आंखें खुली रह गईं जब एक भी किताब नहीं भीगी और न खराब हुई।
उन्होंने शम्स से कहा, ‘यह क्या है शम्स और कौन-सा इल्म है?’
शम्स ने कहा, ‘यह वह जो तुम्हें नहीं आता। यह इल्म तुम्हारी समझ से बाहर है।’ यह कहते हुए शम्स वहां से चले गए। इसलिए कहा जाता है कि किसी को कम मत समझो। अपने ज्ञान पर इतराओ मत। हो सकता है सामने वाले को वह आता हो जो तुम्हें न आता हो। ईश्वर ने हर एक को खूबियां दी हैं। इसलिए सबकी इज्जत करें।