Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 May, 2020 07:00 AM
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है। मां बगलामुखी का एक नाम पीतांबरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है। मां बगलामुखी का एक नाम पीतांबरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के सामान पीला होता है। अत: साधक को माता बगलामुखी की अराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिएं।
मां बगलामुखी मंत्र- ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानांवाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलयबुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।
मां बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम है। बगलामुखी कवच का पाठ करके इस मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है।
मां को उनके भक्त विभिन्न रुपों में प्रेम करते हैं जैसे तांत्रिकों के लिए ये स्तंभन की देवी हैं। गृहस्थों के लिए सभी परेशानियों का नाश करने वाली ममतामयी मां हैं। यदि आपको शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनी है या वाकसिद्ध और वाद-विवाद में सफलता चाहते हैं अथवा जीवन की हर बाधा को काटना है तो आज के दिन अवश्य मां का ध्यान करें।
माता बगलामुखी कवच
पाठ शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुललाटकम । सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। 1
श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् । पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। 2
देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम । कण्ठदेशं मन: पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। 3
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम । मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। 4
अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी । रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। 5
ब्रह्मास्त्राख्यो मनु: पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु । मन्त्रराज: सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। 6
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु । मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। 7
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् । वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णा: परमेश्वरी ।। 8
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी । स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। 9
जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च । पादोध्र्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।। 10
विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे । ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।। 11
सर्वांगं प्रणव: पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु । ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। 12
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु । कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। 13
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु । ऊर्ध्व पातु महालक्ष्मी: पाताले शारदावतु ।। 14
इत्यष्टौ शक्तय: पान्तु सायुधाश्च सवाहना: । राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायक: ।। 15
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु । द्विभुजा रक्तवसना: सर्वाभरणभूषिता: ।। 16
योगिन्य: सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम । इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। 17