Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Jul, 2017 11:13 AM
सूफी संत राबिया धर्मग्रंथ पढ़ रही थीं। उसी समय एक फकीर वहां आया और उनसे दुर्वचन कहने लगा। राबिया ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
सूफी संत राबिया धर्मग्रंथ पढ़ रही थीं। उसी समय एक फकीर वहां आया और उनसे दुर्वचन कहने लगा। राबिया ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह ग्रंथ पढ़ती रहीं। उत्सुकतावश फकीर राबिया के पास यह देखने पहुंचा कि आखिर वह क्या पढ़ रही हैं जो इस कदर डूबी हैं। जब उसने ग्रंथ पर नजर डाली तो एक वाक्य के कुछ शब्दों को काटा हुआ पाया। उसने चिल्लाकर राबिया से पूछा, ‘‘ये शब्द किसने काटे हैं?’’
राबिया ने शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘मैंने।’’
‘‘क्या किसी मनुष्य को धर्मग्रंथ में लिखा अंश काटने का अधिकार है।’’
‘‘हां, जैसे-जैसे धर्मग्रंथ की नसीहतों के जरिए हमारा ज्ञान बढ़ता जाता है वैसे-वैसे हमारी बुद्धि परिपक्व होती जाती है।’’
राबिया ने जवाब दिया, ‘‘अगर हमें कोई अंश गलत प्रतीत हो तो उसमें आवश्यक सुधार करने में कोई हर्ज नहीं।’’
‘‘तुमने किस अंश को गलत माना है?’’
उसने आगे पूछा। राबिया ने बताया, ‘‘इसमें लिखा है कि शैतान का धिक्कार करना चाहिए। यह वाक्य मुझे ठीक नहीं लगा और मैंने उसे काटकर लिख दिया- शैतान से प्यार करना चाहिए।’’
शैतान का धिक्कार करने में क्या बुराई है? फकीर के इस सवाल पर राबिया ने समझाते हुए कहा, ‘‘यदि किसी व्यक्ति का धिक्कार करना हो तो उसके प्रति हमारे दिल में क्रोध होना चाहिए। मैं अपने दिल में क्रोध, नफरत जैसे दुर्गुणों को भटकने नहीं देती क्योंकि मेरे दिल में खुदा का वास है।’’
राबिया ने आगे कहा, ‘‘मेरे दिल में जो खुदा छिपा हुआ है वह मुझे दूसरों से प्रेम करने का आदेश देता है। वह जानता है कि शैतान को क्रोध से नहीं बल्कि प्यार से वश में किया जा सकता है इसलिए मैंने शैतान का धिक्कार करने संबंधी वाक्य काटकर उसके स्थान पर उससे प्यार करने की बात लिख डाली।’’
फकीर ने उनसे माफी मांगी और वहां से चुपचाप चला गया।