Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Aug, 2017 02:31 PM
वास्तु के संबंध में लोगों में काफी भ्रम एवं असमंजस की स्थिति है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। भूमि, जल, वायु एवं प्रकाश का सही समन्वय कर भवन निर्माण करने का शास्त्र है। वास्तु शास्त्र का मूल आधार भूमि, जल,
वास्तु के संबंध में लोगों में काफी भ्रम एवं असमंजस की स्थिति है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। भूमि, जल, वायु एवं प्रकाश का सही समन्वय कर भवन निर्माण करने का शास्त्र है। वास्तु शास्त्र का मूल आधार भूमि, जल, वायु एवं प्रकाश है, जो जीवन के लिए अति आवश्यक है। इनमें असंतुलन होने से नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होना स्वाभाविक है। उदाहरण के द्वारा इसे और स्पष्ट किया जा सकता है। सड़क पर बाएं ही क्यों चलते हैं क्योंकि सड़क के बाईं ओर चलना आवागमन का एक सरल नियम है। नियम का उल्लंघन होने पर दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है, इसी तरह वास्तु के नियमों का पालन न करने पर व्यक्ति विशेष का स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि उसके रिश्ते पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वास्तु में रसोईघर के कुछ निर्धारित स्थान दिए गए हैं। इसलिए हमें रसोई घर भी वहीं बनाना चाहिए। वास्तुशास्त्र के अनुसार रसोईघर, चिमनी, भट्टी धुएं की धौंकनी आदि मकान के विशेष भाग में निर्धारित की जाती हैं, ताकि हवा का वेग धुएं तथा खाने की गंध को अन्य कमरों में न फैलाए तथा इससे रहने व काम करने वालों का स्वास्थ्य न बिगड़े।
रसोई कहां हो...
रसोईघर हमेशा आग्नेय में ही होना चाहिए।
रसोईघर के लिए दक्षिण पूर्व क्षेत्र सर्वोत्तम रहता है। वैसे उत्तर-पश्चिम में भी बनाया जा सकता है।
यदि घर में अग्नि आग्नेय कोण में हो तो यहां रहने वाले बीमार नहीं होते। ये लोग हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।
यदि रसोईघर दक्षिण दिशा में हो तो परिवार वाले हमेशा स्वस्थ व सेहतमंद रहते हैं। उनके यहां धन-वैभव बरकरार रहता है।
यदि भवन में अग्नि पूर्व दिशा में हो तो यहां रहने वालों का कोई ज्यादा नुक्सान नहीं होता।
रसोई घर हमेशा आग्नेय कोण अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए या फिर इन दोनों दिशाओं के मध्य में होना चाहिए, रसोई घर के लिए उत्तम दिशा आग्नेय ही है।
क्या करें, क्या न करें
उत्तर-पश्चिम की ओर रसोई का स्टोर रूम, फ्रिज और बर्तन आदि रखने की जगह बनाएं।
रसोईघर के दक्षिण-पश्चिम भाग में गेहूं, आटा, चावल आदि अनाज रखें।
रसोई के बीचों-बीच कभी भी गैस, चूल्हा आदि नहीं जलाएं और न ही रखें।