गणेश शक्तिपीठ स्वयंभू अष्टविनायक: गणेशोत्सव के दौरान विशेष फलदायी है ये यात्रा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Aug, 2017 10:49 AM

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भगवान गणेश हिंदुओं के लिए प्रथम पूजनीय भगवान माने जाते हैं। उन्हें रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि का देवता माना जाता है। महाराष्ट्र की संस्कृति में गणपति का विशेष स्थान है। यहां गणेशोत्सव महापर्व कहलाता है। 10 दिनों तक

भगवान गणेश हिंदुओं के लिए प्रथम पूजनीय भगवान माने जाते हैं। उन्हें रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि का देवता माना जाता है। महाराष्ट्र की संस्कृति में गणपति का विशेष स्थान है। यहां गणेशोत्सव महापर्व कहलाता है। 10 दिनों तक चलने वाला यह पर्व महाराष्ट्र का सबसे बड़ा उत्सव होता है। गणेशोत्सव के इस महापर्व के निमित्त महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों की महत्ता और बढ़ जाती है। अष्टविनायक यानी ‘आठ गणपति’। इनके आठों अति प्राचीन मंदिरों को महाराष्ट्र के शक्तिपीठ ही माना जाता है। गणेश बुद्धि के देवता हैं इसलिए इन्हें साक्षात बुद्धिपीठ कहें तो गलत नहीं होगा। अष्टविनायक की सभी प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं। इन आठों अत्यंत प्राचीन मंदिरों का विशेष उल्लेख गणेश और मुद़ल पुराण जो हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह है, में किया गया है। 

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श्री मयूरेश्वर
हिंदुओं में शुभ कार्य से पहले गणेश पूजन मंगलकारक माना गया है। महाराष्ट्र में मंगल कार्य से पहले काफी श्रद्धालु अष्टविनायक दर्शन करते हैं। जिस प्रकार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है वैसे ही गणपति उपासना के लिए महाराष्ट्र के अष्टविनायक का विशेष महत्व है। इनका पौराणिक महत्व और इतिहास है। गणपति के इन शक्तिपीठों के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। अष्टविनायक दर्शन की शास्त्रोक्त क्रमबद्धता के अनुसार मोरगांव, पुणे स्थित श्री मयूरेश्वर मंदिर प्रथम स्थान पर आता है। मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। माना जाता है कि यहां भगवान गणेश ने सिंधुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। उन्होंने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था। इसी से इसका नाम मयूरेश्वर पड़ा।  मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लम्बे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं जो चारों युगों सतयुग,त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं। इसके द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित है जिसका मुंह भगवान गणेश की ओर है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में शिव जी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, बाद में नंदी ने यहां से जाने से इंकार कर दिया। तभी से नंदी यहीं विराजे हैं। नंदी और मूषक दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं। यहां गणेश जी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं और सूंड बाईं ओर है।

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श्री सिद्धिविनायक
अष्टविनायक का दूसरा मंदिर है सिद्धिविनायक। यह मंदिर पुणे से करीब 200 कि.मी. दूरी पर नगर की करजत तहसील में स्थित है। यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यहां गणेश जी की मूर्ति का मुख उत्तर दिशा की ओर है और सूंड सीधे हाथ की ओर है। यह क्षेत्र सिद्धटेक गांव के अंतर्गत आता है। सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान है। ऐसा माना जाता है यहां भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थीं।

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श्री बल्लालेश्वर
अष्टविनायक में तृतीय क्रम पर आता है पाली गांव, रायगढ़ स्थित श्रीबल्लालेश्वर मंदिर। यह मुम्बई-पुणे मार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। प्राचीन काल में बल्लाल नाम का एक लड़का था। वह गणेश जी का परमभक्त था। एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया। पूजन कई दिनों तक चलता रहा। पूजा में शामिल कई बच्चे घर लौट कर नहीं गए और वहीं बैठे रहे। इस कारण उन बच्चों के माता-पिता ने बल्लाल को पीटा और गणेश जी की प्रतिमा के साथ उसे भी जंगल में फैंक दिया। घायलावस्था में बल्लाल गणेश जी के मंत्रों का जप करता था। इससे प्रसन्न होकर गणेश जी ने उसे दर्शन दिए। तब बल्लाल ने गणेश जी से आग्रह किया कि अब इसी स्थान पर निवास करें और गणपति ने उसका आग्रह मान लिया।

 

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श्री वरदविनायक
अष्टविनायक में चौथे क्रम पर हैं श्री वरदविनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में सुंदर पर्वतीय गांव महाड़ में स्थित है। कहा जाता है कि वरदविनायक भक्तों की सभी कामनाओं को पूरा करते हैं। वरदविनायक का नाम लेने मात्र से ही मनोकामना पूर्ति का वरदान प्राप्त हो जाता है। यहां नंददीप है जो कई वर्षों से प्रज्जवलित है।

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श्री चिंतामणि
अष्टविनायक के हर मंदिर की अपनी अलग कहानी है। अष्टविनायक के पांचवें गणेश हैं चिंतामणि गणपति। यह मंदिर पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में स्थित है। मंदिर के पास ही तीन नदियों का संगम है। ये तीन नदियां हैं भीम, मुला और मुथा। यहां आने से विचलित मन को शांति और दुख से निजात मिलती है। मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।

 

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श्री गिरिजात्मज
पुणे के लेण्याद्री गांव में गिरिजात्मज अष्टविनायक स्थित हैं। अष्टविनायक के छठे गणपति। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। गिरिजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश। यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। इस लेन्यादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरिजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढिय़ां चढऩी होती हैं। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काट कर बनाया गया है। अष्टविनायक मंदिरों की खास बात यह है कि यहां हर मूर्ति की सूंड का आकार अलग है।

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श्री विघ्नेश्वर
अष्टविनायक में सातवें गणेश हैं ओझर के विघ्नेश्वर। यह पुणे-नासिक रोड पर नारायण गांव से जूनर या ओझर होकर करीब 85 कि.मी. दूरी पर स्थित है। प्रचलित कथा के अनुसार विघ्नासुर नामक एक असुर था जो संतों को प्रताडि़त करता था। भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलाई। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में माना जाता है।

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श्री महागणपति
अष्टविनायक मंदिर के आठवें गणेश जी हैं महागणपति। यह मंदिर पुणे के राजणगांव में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है जो बहुत विशाल और सुंदर है। यहां गणपति की अद्भुत प्रतिमा है जिसे माहोतक नाम से भी जाना जाता है। 

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कहते हैं कि मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने में छिपी हुई है। पुराने समय में जब विदेशियों ने यहां आक्रमण किया था तो उनसे मूर्ति बचाने के लिए उसे तहखाने में छिपा दिया गया था। ये हैं अष्टविनायक जिनकी महिमा अपरंपार है। अष्टविनायक की यात्रा का यही नियम है। इन स्थानों पर गणेश की प्रतिमा मिलने के क्रमानुसार ही यहां दर्शन करने चाहिएं और यात्रा पूरी करने के बाद पुन: पहले विनायक की यात्रा करने पर ही अष्टविनायक की यात्रा का फल मिलता है। अष्टविनायक की यात्रा जीवन में शांति और खुशहाली लाती है। गणेशोत्सव के दौरान अष्टविनायक की यात्रा विशेष फलदायी होती है।

 

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