Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Sep, 2017 12:53 PM
दशहरा दस प्रकार के पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा एवं चोरी जैसे दुष्कर्मों के परित्याग की प्रेरणा देता है। इस दिन सायं प्रदोष काल में ‘विजय’ नामक शुभ व सफल कार्यों में सिद्धि प्रदान
दशहरा दस प्रकार के पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा एवं चोरी जैसे दुष्कर्मों के परित्याग की प्रेरणा देता है। इस दिन सायं प्रदोष काल में ‘विजय’ नामक शुभ व सफल कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाला मुहूर्त होता है। इसी विजय नाम मुहूर्त में रावण दहन होता है। इस मुहूर्त को अति शुभ समझकर राजा-महाराजा अपने शत्रुओं पर आक्रमण करते थे। भगवान राम ने भी इसी मुहूर्त में रावण का वध किया था।
दशहरे पर अनेक धार्मिक अनुष्ठान करने की परंपरा शास्त्रों में बताई गई है। परिवार के साथ घर से पूर्व दिशा की ओर जाकर शमी वृक्ष अर्थात खेजड़ी का पूजन करना चाहिए। खेजड़ी वृक्ष की पूजा करने के बाद उसकी टहनी घर में लाकर मुख्य चौक के अंदर प्रतिष्ठित करनी चाहिए। शमी शत्रुओं का समूल विनाश करती है। शमी के कांटे हत्या इत्यादि के पापों से भी रक्षा करते हैं।
'अर्जुन के धनुष को धारण करने वाली और भगवान श्रीराम को भी प्रिय लगने वाली शमी मेरा कल्याण करे।'
हमारी संस्कृति में शमी को पवित्रतम वृक्ष माना गया है, कदाचित यही कारण रहा था कि रामायण में हनुमान जी ने माता सीता को शमी वृक्ष के समान पवित्र कहा था। शमी वृक्ष का पूजन करने से पतिव्रता स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और जो लोग शत्रुओं से पीड़ित हों, उन्हें विजय मिलती है। 'श्रीरामचरितमानस' के लंकाकांड में वर्णित राम-रावण युद्ध प्रसंग का पाठ करने से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।