Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jun, 2017 07:41 AM
रमजान-उल-मुबारक के रोजों का असल मकसद ईमान वालों में तकवा एवं परहेजगारी का रुझान आम करना है।
रमजान-उल-मुबारक के रोजों का असल मकसद ईमान वालों में तकवा एवं परहेजगारी का रुझान आम करना है। हमारी ईद उस समय ही ईद होगी जब इस रमजान-उल-मुबारक के रोजों के पश्चात हम पहले से ज्यादा खुदा से डरने वाले और नेक कामों में सबसे आगे रहने वाले बन जाएं। ईद-उल-फितर के पवित्र एवं खुशियों वाले दिन जरूरी है कि हम बेहूदा, लचर सरोकारों और फिजूलखर्ची से बचें। जब हम ईद की खुशियां मना रहे हों तो कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे समाज और गली-मोहल्ले में कितने ही गरीब अर्थात मोहताज लोग हैं। हमें सब को अपनी खुशी में शामिल करना चाहिए। ईद-उल-फितर के इस त्यौहार को अपने रब के साथ नजदीक होने का साधन बनाएं। ईद की खुशियों में अपने प्यारे वतन में गरीबी, भुखमरी, जुल्म और नाइंसाफी से पीड़ित लोगों के हालात को बदलने की कोशिश करें ताकि एक सच्चा, खूबसूरत और कल्याणकारी समाज वजूद में आ सके।
हम आपसी सांझ और भाइचारे का शोर तो मचाते हैं लेकिन विशेष रूप से इसके लिए प्रयास नहीं करते। अगर हम अपनी ईद की खुशियों को और अधिक करना चाहते हैं तो हमें चाहिए कि जरूरमंदों एवं पीड़ितों की मदद बढ़-चढ़ कर करें। ऐसा करके ही हम ईद की असली खुशियां प्राप्त कर सकते हैं।
ईद-उल-फितर गमगीन जिंदगियों को माला-माल करने और आपसी भाइचारे को मजबूत करने का पाठ पढ़ाता है। इसी कारण ईश्वर ने यह हुक्म दिया है कि ईद-उल-फितर की नमाज पढऩे से पहले ही अपने घर के सभी लोगों की ओर से सदका-ए-फितर अदा किया जाए ताकि गरीब, मिस्कीन एवं यतीम भी अपनी जरूरतों को पूरा करके हमारे साथ ईद की खुशियों में शामिल हो सकें क्योंकि असली खुशी दूसरों की गमगीन जिंदगियों को खुशी से मालामाल करने का नाम है। इससे मोहब्बत, भाईचारा और मेल-जोल के जज्बात पैदा होते हैं।