भोलेनाथ का ऐसा मंदिर, जहां पूजा-अर्चना करना है वर्जित

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jun, 2017 12:28 PM

ek hathiya temple in uttarakhand

उत्तराखंड में देवी-देवताअों के बहुत सारे मंदिर स्थित है। वहीं पिथौरागढ़ से 70 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा थल में भगवान शिव का एक मंदिर है, जिसे एक हथिया

उत्तराखंड में देवी-देवताअों के बहुत सारे मंदिर स्थित है। वहीं पिथौरागढ़ से 70 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा थल में भगवान शिव का एक मंदिर है, जिसे एक हथिया मंदिर कहा जाता है। ये एक शापित मंदिर है, जहां पूजा-अर्चना वर्जित है। एक हथिया का अर्थ है एक हाथ से बना हुआ मंदिर। कहा जाता है कि इस मंदिर को कारीगर ने अपने एक हाथ से पूरी रात में बना दिया था। यहां स्थापित शिवलिंग चट्टान को काट कर बनाया गया है। मंदिर का साधारण प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की तरफ है। मंदिर के मंडप की ऊंचाई 1.85 मीटर और चौड़ाई 3.15 मीटर है। मंदिर को देखने दूर- दूर से लोग पहुंचते हैं, परंतु पूजा अर्चना निषेध होने के कारण केवल देख कर ही लौट जाते हैं।
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कहा जाता है कि एक मूर्तिकार पत्थरों को काटकर प्रतिमाएं बनाता था। एक बार किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ चला गया। वह अपने एक हाथ से ही मूर्तियां बनाने लगा। गांव वालों ने मूर्तिकार को उलाहना देना शुरू कर दिया कि वह एक हाथ से क्या कर सकता है। लोगो की उलाहना से खिन्न होकर मूर्तिकार ने गांव से जाने का प्रण किया। एक रात वह गांव के दक्षिण छोर की अोर गया, जहां गांव वाले शौच आदि के लिए जाते थे। वहां एक विशाल चट्टान थी। वहां उसने चट्टान को काटकर देवालय बना दिया था। जब सुबह गांव वाले वहां गए तो वे हैरान रह गए। गांव वालों ने कारीगर को ढूंढा लेकिन वह नहीं मिला। 

जब स्नानीय पंड़ितों ने मंदिर में बने शिवलिंग अौर प्रतिमा को देखा तो पता चला कि मूर्तिकार ने शीघ्रता में शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बना दिया है। जिसकी पूजा करना फलदायी नहीं होता। ऐसी प्रतिमा की पूजा करना अशुभ होता है। जिसके कारण यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा नहीं होती। लेकिन पास ही बने जल सरोवर में बच्चों के मुंडन संस्कार के बाद स्नान कराया जाता है। 

एक अन्य कथा के अनुसार राजा ने कारीगर का हाथ कटवा दिया था ताकि वह कोई दूसरी सुंदर इमारत न बना सके। लेकिन राजा कारीगर का हौसला न तोड़ पाया। एक दिन कारीगर ने अपने एक हाथ से शिव मंदिर का निर्माण किया अौर हमेशा के लिए वह गांव छोड़कर चला गया। जब लोगों को यह बात पता चली तो उन्होंने फैसला किया कि उनके मन मे भोलेनाथ के लिए सदैव श्रद्धा रहेगी लेकिन राजा के कृत्य का विरोध स्वरूप वे मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं करेंगे। 

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