नीतिशास्त्र- इन 3 की सेवा से मिलता है, सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा का फल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Dec, 2017 11:09 AM

ethics must service of these 3

विदुर नीति (7/39) के अनुसार-नवै श्रुतमविज्ञाय वृद्धाननुपसेव्य वा। धर्मार्थौ वेदितुं शक्यौ बृहस्पतिसमैरपि। अर्थात बृहस्पति के समान मनुष्य भी शास्त्रज्ञान अथवा वृद्धों की सेवा किए बिना धर्म और अर्थ का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।  पद्मपुराण...

विदुर नीति (7/39) के अनुसार-नवै श्रुतमविज्ञाय वृद्धाननुपसेव्य वा। धर्मार्थौ वेदितुं शक्यौ बृहस्पतिसमैरपि।

अर्थात बृहस्पति के समान मनुष्य भी शास्त्रज्ञान अथवा वृद्धों की सेवा किए बिना धर्म और अर्थ का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। 

पद्मपुराण सृष्टिखंड (47/11) में कहा गया है-

सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।


माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता अपनी संतान के लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष माता-पिता की सेवा करे, तब भी वह इनसे उऋण नहीं हो सकता।


यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम्। न तस्य निष्कृतिर्शक्या कर्तु वर्षशतैरपि।।


श्री रामचरित मानस में भगवान श्रीराम अनुज लक्ष्मण को माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन का फल बताते हुए कहते हैं कि जो माता-पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ाकर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है, नहीं तो जगत में जन्म व्यर्थ है-

मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करङ्क्षह सुभायं। लहेहु लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायं।।
सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु वचन अनुरागी।। चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्राण सम जाकें।।
अस जियं जानि सुनहूं सिख भाई। करहु मातु पितु पद सेवकाई।। अनुचित उचित बिचारु तजि जे पालङ्क्षह पितु बैन।
ते भाजन सुख सुजस के बसङ्क्षह अमरपति ऐन।। (रामचरित-2/70, 2/41/7, 2/46/2, 2/71/1, 2/74)


महाभारत के शांतिपर्व में एक कथा है- जब राजऋषि भीष्मपितामह शरशैया पर पड़े हुए थे, उस समय महाराज युधिष्ठिर ने आज्ञा पाकर पूछा- दादा जी! धर्म के मार्ग का मुझे उपदेश दें।


इस पर भीष्म पितामह ने कहा- राजन! समस्त धर्मों से उत्तम फल देने वाली माता-पिता और गुरु की भक्ति है। मैं सब प्रकार की पूजा से इनकी सेवा को बड़ा मानता हूं। इन तीनों की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करना चाहिए।

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