आपके हर दुख का कारण है ये Feeling, इसे करें अपने से दूर और हो जाएं Happy

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jun, 2017 10:33 AM

feeling the reason for every misery is to do it

जिस व्यक्ति के विचार उसके अनुकूल हैं, वह सभी प्रकार के लोगों, परिस्थितियों और भाग्य को अपने अनुकूल पाता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति के विचार

जिस व्यक्ति के विचार उसके अनुकूल हैं, वह सभी प्रकार के लोगों, परिस्थितियों और भाग्य को अपने अनुकूल पाता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति के विचार प्रतिकूल होते हैं, उसे अपने चारों ओर शत्रु ही दिखाई पड़ते हैं।


कहते हैं कि मनुष्य के विचार ही मनुष्य को सुखी और दुखी बनाते हैं। जिस मनुष्य के विचार उसके नियंत्रण में हैं, वह सुखी है और जिसके विचार उसके नियंत्रण में नहीं रहते, वह सदा दुखी रहता है। ऐसा व्यक्ति अक्सर अपने दुख का कारण खुद को न मानकर किसी व्यक्ति, वस्तु या बाह्य पदार्थ को मानता है। इस प्रकार की क्रिया को आधुनिक मनोविज्ञान में आरोपण की क्रिया कहते हैं। विचारों की यह मलिनता के परिणामस्वरूप उसके आसपास का वातावरण भी दूषित हो जाता है और मित्र भी शत्रु बन जाते हैं तथा सफलता भी विफलता में परिणत हो जाती है।


मनोचिकित्सकों के अनुसार ऐसा चिन्तन जिसका कोई उद्देश्य न हो, जिसे करने से कोई सार्थक परिणाम सामने न आए, सिवाय तनाव के, वही व्यर्थ चिन्तन है और उसी का परिणाम चिंता, तनाव, डिप्रैशन, ब्लड प्रैशर, सिरदर्द, बेचैनी, अनिद्रा आदि के रूप में सामने आता है। हमारे मन में विचार तरंगें निरंतर उठती ही रहती हैं, इसलिए उनकी उपेक्षा करना संभव नहीं है क्योंकि वह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। अत: हमें इस बात के प्रति पूरी तरह से सतर्क रहना चाहिए कि हमारे मन-मस्तिष्क में किस प्रकार के विचार आ-जा रहे हैं। अन्यथा गन्दे और निरुपयोगी विचार मन मस्तिष्क में उठकर वैसे ही गंदे, निरुपयोगी कामों में मनुष्य को कार्यरत कर देते हैं।


ऐसे विचारों को रोकने और निकाल फैंकने में प्रारंभ में तो हमें कठिनाई अवश्य होगी, किंतु थोड़े से ही अभ्यास से यह कार्य सरल हो जाता है। आत्म-अभिमानी अवस्था में रहनेे, ध्यान का अभ्यास करने, दिनचर्या सुव्यवस्थित करने, विकारों से स्वयं को बचाकर रखने, बुरा न देखने, न सुनने, न बोलने से दुनिया के बाहरी वातावरण को देखते हुए भी न देखने के व्यर्थ चिंतन से हम खुद को बचा सकते हैं। हम यह न सोचें कि मुझे व्यर्थ को समाप्त करना है, बल्कि यह सोचें कि मुझे सदा शुभ व श्रेष्ठ विचार मन में लाने हैं क्योंकि शुभ व श्रेष्ठ विचारों की शक्ति से व्यर्थ अपने आप ही समाप्त हो जाता है। 
 

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