खुद में पैदा करें ये भावना, Impossible काम भी हो जाएगा संभव

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Nov, 2017 09:49 AM

fill this spirit yourself impossible work will also be possible

एक समय शराब का एक व्यसनी एक संत के पास गया और विनम्र स्वर में बोला, ‘‘गुरुदेव, मैं इस शराब के व्यसन से बहुत दुखी हो गया हूं। इसकी वजह से मेरा घर बर्बाद हो रहा है।

एक समय शराब का एक व्यसनी एक संत के पास गया और विनम्र स्वर में बोला, ‘‘गुरुदेव, मैं इस शराब के व्यसन से बहुत दुखी हो गया हूं। इसकी वजह से मेरा घर बर्बाद हो रहा है। मेरे बच्चे भूखे मर रहे हैं किंतु मैं शराब के बगैर नहीं रह पाता। मेरे घर की शांति नष्ट हो गई है। कृपया आप मुझे कोई सरल उपाय बताएं जिससे मैं अपने घर की शांति फिर से पा सकूं ।’’ गुरुदेव ने कहा, ‘‘जब इस व्यसन से तुमको इतना नुक्सान होता है तो तुम इसे छोड़ क्यों नहीं देते?’’ व्यक्ति बोला, ‘‘पूज्य श्री, मैं शराब को छोड़ना चाहता हूं, पर यह ही मेरे खून में इस कदर समा गई है कि मुझे छोडने का नाम ही नहीं ले रही है।’’ गुरुदेव ने हंस कर कहा, ‘‘कल तुम फिर आना। मैं तुम्हें बता दूंगा कि शराब कैसे छोडनी है?’’

 

दूसरे दिन निश्चित समय पर वह व्यक्ति महात्मा के पास गया। उसे देखकर महात्मा झट से खड़े हुए और एक खंभे को कस कर पकड़ लिया। जब उस व्यक्ति ने महात्मा को इस दशा में देखा तो कुछ समय वह मौन खड़ा रहा, पर जब काफी देर बाद भी महात्मा जी ने खंभे को नहीं छोड़ा तो उससे रहा नहीं गया और पूछ बैठा, ‘‘गुरुदेव, आपने व्यर्थ इस खंभे को क्यों पकड़ रखा है?’’ गुरुदेव बोले, ‘‘वत्स, मैंने इस खंभे को नहीं पकड़ा है, यह खंभा मेरे शरीर को पकड़े हुए है। मैं चाहता हूं कि यह मुझे छोड़ दे किंतु यह तो मुझे छोड़ ही नहीं रहा है।’’ उस व्यक्ति को अचंभा हुआ। वह बोला, ‘‘गुरुदेव, मैं शराब जरूर पीता हूं मगर मूर्ख नहीं हूं। आपने ही जानबूझ कर इस खंभे को कस कर पकड़ रखा है।’’

 

गुरुदेव बोले, ‘‘नादान मनुष्य, यही बात तो मैं समझाना चाहता हूं कि जिस तरह मुझे खंभे ने नहीं बल्कि मैंने उसे पकड़ रखा था उसी तरह इस शराब ने तुम्हें नहीं पकड़ा है बल्कि सच तो यह है कि तुमने ही शराब को पकड़ रखा है। तुम कह रहे थे कि शराब मुझे नहीं छोड़ रही है जबकि सत्य यह है कि तुम अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लो कि मुझे इस व्यसन का त्याग अभी कर देना है तो इसी वक्त तुम्हारी शराब पीने की आदत छूट जाएगी। शरीर की हर क्रिया मन के द्वारा नियंत्रित होती है और मन में जैसी इच्छाशक्ति प्रबल होती है वैसा ही कार्य सफल होता है। वह शराबी गुरु के इस अमृत वचनों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी वक्त भविष्य में कभी शराब न पीने का दृढ़ संकल्प किया। उसके घर में खुशियां लौट आईं और वह शांति से जीवन यापन करने लगा।

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