इस कारण कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था महाभारत का युद्ध

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Feb, 2018 06:04 PM

for this reason the war of mahabharata was fought in kurukshetra

भरतवंश में महाभारत के अनुसार जिस धरती को राजा कुरु द्वारा बार-बार जोता गया, वह स्थान कुरुक्षेत्र कहलाया। राजा कुरु को देवराज यही कारण है कि

भरतवंश में महाभारत के अनुसार जिस धरती को राजा कुरु द्वारा बार-बार जोता गया, वह स्थान कुरुक्षेत्र कहलाया। राजा कुरु को देवराज इंद्र ने वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर युद्ध करते हुए मरेगा, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। यही कारण है कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया। लेकिन राजा कुरु को यह वरदान कैसे व कब मिला, इसके बारे में किसा को पूरी जानकारी नहीं है। आगे जानें इससे संबंधित कथा- 


इसलिए इंद्र ने दिया राजा कुरु को वरदान
महाभारत के अनुसार, कुरु ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई। देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके इस स्थान पर मारा जाएगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।


कुरुक्षेत्र का महत्व
महाभारत एवं अन्य पुराणों में कुरुक्षेत्र की महिमा के बारे में बताया गया है। महाभारत के वनपर्व के अनुसार, कुरुक्षेत्र में आकर सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं और जो ऐसा कहता है कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊंगा और वहीं निवास करुंगा। यहां तक कि यहां की उड़ी हुई धूल के कण पापी को परम पद देते हैं। नारद पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, किन्तु वे, जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन:जन्म नहीं लेते। भगवद्गीता के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है।

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