चतुर्थ रूप-मैया कूष्माण्डा‘‘पिलाए अमृतकलश से अमृत’’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Mar, 2018 09:44 AM

fourth navratra of devi kushmanda

दुर्गा शक्ति को दिल में बसाएं मैया कूष्माण्डा के द्वारे जाएं! करें प्रज्वलित ज्योत तन-मन अंधकार जीवन के दूर भगाती!! आओ हम सब रलमिल उतारें चतुर्थ नवरात्र की आरती!!! घना अंधकार चहुं ओर छाया था

दुर्गा शक्ति को दिल में बसाएं
मैया कूष्माण्डा के द्वारे जाएं!
करें प्रज्वलित ज्योत तन-मन
अंधकार जीवन के दूर भगाती!!
आओ हम सब रलमिल उतारें
चतुर्थ नवरात्र की आरती!!!
घना अंधकार चहुं ओर छाया था
खौफनाक, भयानक, काला साया था!
मैया कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड रचाया
नौ ग्रहों की छवि को सजाया!!
सूर्यलोक में बनाया अपना डेरा
जग को दिया उजला सवेरा!
प्रभामंडल भी सूर्य सा बलशाली
सूरत मैया की ऐसी निराली!!
भक्ति का मार्ग सबको दिखलाती
उतारें सुबह-शाम मां की आरती!!!
अष्ट भुजाओं वाली सबकी दाती
शेर की सवारी तुझको है भाती!
सजे हाथों में धनुष, बाण, कमल
चक्र, गदा, कमण्डल है मां थामे!!
पिलाए अमृतकलश से अमृत
मां लुटाती भक्तों पर खजाने!
लहराए लाल परचम तेरे मंदिर
गाता वो हरदम खुशियों के तराने
बिछुड़ों को मां हमसे मिलाती
उतारें जगतारिणी मां की आरती!!!
कहे ‘झिलमिल’ अम्बालवी कवि
पथ आलौकिक  रोशन तू करती!
पूर्जा-अर्चना से महकाए आंगन
झोलियां खुशियों से तू भरती!!
करें पूजन प्रेम से कंजकों का
मां उन भक्तों को गले लगाती!
करती पूर्ण हर आशा मन की
हर सपना मां उनका सजाती!!
फूल बहारों के मन में खिलाती
उतारें कूष्माण्डा मां की आरती!!!
दुर्गा शक्ति को दिल में बसाएं
मैया कूष्माण्डा के द्वारे जाएं!
करें प्रज्वलित ज्योत तन-मन
अंधकार जीवन के दूर भगाती!!
आओ हम सब रलमिल उतारें
चतुर्थ नवरात्र की आरती!!!
घना अंधकार चहुं ओर छाया था
खौफनाक, भयानक, काला साया था!
मैया कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड रचाया
नौ ग्रहों की छवि को सजाया!!
सूर्यलोक में बनाया अपना डेरा
जग को दिया उजला सवेरा!
प्रभामंडल भी सूर्य सा बलशाली
सूरत मैया की ऐसी निराली!!
भक्ति का मार्ग सबको दिखलाती
उतारें सुबह-शाम मां की आरती!!!
अष्ट भुजाओं वाली सबकी दाती
शेर की सवारी तुझको है भाती!
सजे हाथों में धनुष, बाण, कमल
चक्र, गदा, कमण्डल है मां थामे!!
पिलाए अमृतकलश से अमृत
मां लुटाती भक्तों पर खजाने!
लहराए लाल परचम तेरे मंदिर
गाता वो हरदम खुशियों के तराने
बिछुड़ों को मां हमसे मिलाती
उतारें जगतारिणी मां की आरती!!!
कहे ‘झिलमिल’ अम्बालवी कवि
पथ आलौकिक  रोशन तू करती!
पूर्जा-अर्चना से महकाए आंगन
झोलियां खुशियों से तू भरती!!
करें पूजन प्रेम से कंजकों का
मां उन भक्तों को गले लगाती!
करती पूर्ण हर आशा मन की
हर सपना मां उनका सजाती!!
फूल बहारों के मन में खिलाती
उतारें कूष्माण्डा मां की आरती!!!

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