ब्रह्म पुराण से, ऋषि अपने तप-तेज के बल पर करते थे सटीक भविष्यवाणी

Edited By ,Updated: 19 May, 2017 11:31 AM

from brahma purana

सूर्यवंशी सम्राट सगर की दो रानियां थीं, पर दुर्भाग्य से किसी के भी संतान न हुई। एक दिन कुलगुरु वशिष्ठ ने महाराजा सगर की उदासी का कारण पूछा तो सगर ने कहा, ‘‘गुरुदेव! इतने बड़े साम्राज्य का कोई उत्तराधिकारी अब

सूर्यवंशी सम्राट सगर की दो रानियां थीं, पर दुर्भाग्य से किसी के भी संतान न हुई। एक दिन कुलगुरु वशिष्ठ ने महाराजा सगर की उदासी का कारण पूछा तो सगर ने कहा, ‘‘गुरुदेव! इतने बड़े साम्राज्य का कोई उत्तराधिकारी अब तक पैदा नहीं हुआ। धीरे-धीरे अवस्था ढल रही है। दोनों रानियों में से अभी तक किसी से संतान का जन्म नहीं हुआ। अगर मेरे से ही मेरी वंश परम्परा समाप्त हो गई तो कुल के पितरों को तर्पण देने वाला कोई न रहेगा।’’


गुरु वशिष्ठ ने कहा, ‘‘महाराज! आपकी चिंता उचित है। दैव पर किसी का वश नहीं, फिर भी सत्कर्म करने तथा ब्राह्मण-ऋषियों की सेवा सत्कार करने से पुण्य उदय होता है। उस पुण्य-फल से इच्छित अनुकूल फल मिल सकता है। आप निराश न हों। राज्य में आने वाले अतिथि ऋषियों-ब्राह्मणों की सेवा-सत्कार करते रहें। दैव अवश्य अनुकूल फल देगा।’’


एक बार महर्षि र्और्व राजा सगर के यहां आए। उन्होंने बहुत दिनों तक महाराजा सगर का आतिथ्य ग्रहण किया। महाराजा ने उनका खूब स्वागत-सत्कार किया जिससे वह बहुत प्रसन्न हुए। जब वह जाने लगे तो महाराजा से कहा, ‘‘राजन! आपके अतिथि सत्कार से मैं बहुत प्रसन्न हूं। आपकी कोई कामना जो पूरी न हुई हो बताएं आपके इस अतिथि सत्कार के पुण्य से अवश्य पूरी होगी।’’


सगर ने कहा, ‘‘ऋषिवर! वैसे तो आपकी कृपा से इस विशाल राज्य में सब प्रकार का सुख है। प्रजा बहुत सुखी है। मुझे एक ही दुख है कि मेरे कोई संतान न होने से यह राज्य उत्तराधिकारी से वंचित है।’’


ऋषि ने कहा, ‘‘राजन! आपके यहां संतान अवश्य होगी। आपकी रानी केशिनी के एक पुत्र होगा और दूसरी रानी सुमित के अनेकों पुत्र होंगे। एक पुत्र बहुत बुद्धिमान, बलवान, निष्ठावान होगा। दूसरी रानी के अनेकों पुत्र वीर, साहसी तो होंगे पर वे उद्दंड भी होंगे। उद्दंड और उग्र विचारों के कारण कभी-कभी वे उचित-अनुचित का भेद न कर पाएंगे और अपने कर्मों से अपने लिए संकट का कारण भी बन सकते हैं पर चिंता न करें। सब शुभ होगा।’’ ऐसा आशीर्वाद देकर ऋषि चले गए।


समय आने पर राजा सगर की एक रानी से जो पुत्र हुआ उसका नाम ‘असमंजस’ रखा गया। दूसरी रानी के अनेकों पुत्रों का भी नामकरण हुआ। इस प्रसन्नता से महाराजा सगर ने एक अश्वमेध यज्ञ करने का विचार किया। यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया तो महाराजा ने उसकी रक्षा का दायित्व अनेकों पुत्रों को सौंप दिया। यज्ञ का घोड़ा निर्बाध होकर घूम रहा था। कोई भी राजा उसे पकडऩे का साहस नहीं कर पाता था। सगर की इस प्रतिष्ठा तथा यश से इंद्र को जलन हुई। उन्हें भय हुआ कि यज्ञ पूरा होगा तो सगर इतने शक्तिशाली हो जाएंगे कि इंद्र पद पर अधिकार कर लेंगे। इस डर से उन्होंने घोड़ा चुरा लेने की योजना बनाई।


एक रात्रि जब सब राजकुमार विश्राम हेतु सो रहे थे तो इंद्र ने चुपके से घोड़ा चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल ऋषि के आश्रम में बांध दिया। कपिल मुनि उस समय ध्यानावस्था में थे, अत: उन्हें कुछ पता ही न चला कि कौन क्या करके जा रहा है। सुबह जागने पर राजकुमारों ने देखा कि घोड़े का कहीं पता नहीं। बहुत खोज खबर की पर घोड़ा कहीं नहीं मिला। अन्य किसी राजा ने भी नहीं पकड़ा था। राजकुमार बड़े चिंतित हुए कि हम इतने लोगों के होते हुए भी घोड़े की रक्षा न कर सके। वापस जाकर पिता को क्या जवाब देंगे। उन्होंने निश्चय किया कि जब तक घोड़े को ढूंढ नहीं निकालेंगे तब तक वापस नहीं जाएंगे। चारों तरफ घूमते हुए पता करते रहे। एक रात बड़े राजकुमार को स्वप्न आया कि घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ खड़ा है। सुबह जागते ही उसने अपने भाइयों से स्वप्न की चर्चा की और तय किया कि स्वप्न के आधार पर कपिल मुनि के आश्रम का पता कर वहां चलना चाहिए। उन्होंने कई ऋषि आश्रमों से पूछते-पूछते कपिल मुनि के आश्रम का पता लगा लिया कि वह पूर्व दिशा में समुद्र तट के निकट है। बस चल पड़े उधर। क्रोध भी आ रहा था कि कैसा मुनि है जो घोड़ा चुरा ले गया। उस तपस्वी व मुनि को घोड़ा चुराने की क्या जरूरत थी? महाराजा सगर के शौर्य तथा प्रतिष्ठा से उसे क्या ईर्ष्या थी?


यही सोचते-विचारते वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे। देखा तो यज्ञ का घोड़ा एक वृक्ष से बंधा था और कपिल मुनि पद्यासन की मुद्रा में ध्यान लगाए बैठे थे। राजकुमारों ने आपस में कहा, ‘‘देखो, स्वप्न सत्य निकला। चलो इसका ध्यान भंग कर पहले उसे दंड दें, फिर घोड़े को ले चलते हैं।’’


ऐसा कह कर सभी राजकुमार आगे बढ़े। एक ने धनुष की नोक से मुनि को कोंचा और दूसरे अपशब्द बोलने लगे। धनुष द्वारा बार-बार कोंचने तथा शोर सुनकर मुनि का ध्यान भंग हुआ। ध्यान में बाधा व्यवधान पडऩे से उन्होंने क्रोध में जो आंखें खोलीं तो उस तप-तेज के ताप से सारे के सारे राजकुमार क्षण भर में जलकर वहीं राख के ढेर बन गए।


कपिल मुनि ने जब अपने योग बल से वस्तु की स्थिति को जाना तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। उन्होंने महाराजा सगर को इस घटना का समाचार भिजवाया। समाचार सुनकर सगर को बड़ा दुख हुआ तथा उन्हें ऋषि की बात याद हो आई कि ये अनेकों राजकुमार कभी अपनी उद्दंडता से अपने लिए संकट का कारण बनेंगे। ऋषि का वचन सत्य हुआ। अविवेक तथा उद्दंडता के कारण उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा।

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