श्रीमद्भागवत पुराण से जानें, पृथ्वी पर कैसे बनें सात समुद्र-द्वीप

Edited By ,Updated: 10 Feb, 2017 10:35 AM

from shrimad bhagwat purana read relogious story

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार स्वायंभुव मनु के दो पुत्र थे- प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद के वंश में ही भगवान विष्णु के परम भक्त ध्रुव पैदा हुए। प्रियव्रत बड़े आत्मज्ञानी थे।

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार स्वायंभुव मनु के दो पुत्र थे- प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद के वंश में ही भगवान विष्णु के परम भक्त ध्रुव पैदा हुए। प्रियव्रत बड़े आत्मज्ञानी थे। उन्होंने नारद से परमार्थ तत्व का उपदेश ग्रहण करके ब्रह्माभ्यास में जीवन बिताने का दृढ़ संकल्प कर लिया। इससे ब्रह्या को चिंता हुई कि प्रियव्रत के इस परमार्थ तत्व के आग्रह से तो सृष्टि का विस्तार ही रुक जाएगा। स्वायंभुव मनु की आज्ञा का भी इस आत्मयोगी राजकुमार ने सम्मान नहीं किया। वह हंस पर सवार होकर राज कुमार प्रियव्रत के पास आए। देवर्षि नारद भी वहीं थे। ब्रह्मा को देखते ही नारद, स्वायंभुव मनु तथा प्रियव्रत उठ खड़े हुए और प्रणाम-सत्कार किया। ब्रह्मा ने सभी को आशीर्वाद देकर आसन ग्रहण किया।


ब्रह्मा ने प्रियव्रत से कहा, ‘‘पुत्र! मैं तुमसे सत्य सिद्धांत की बात कहता हूं। हम सब तुम्हारे पिता, तुम्हारे गुरु यह नारद, भगवान महादेव तथा मैं स्वयं भी भगवान श्रीहरि की ही आज्ञा मानकर सारे कर्म करते हैं। उनके विधान को कोई नहीं जान सकता। उनकी इच्छानुसार ही सब कर्मों को भोगते हुए हम अपना जन्म सफल करने के लिए निस्संग होकर श्रीहरि के आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं जिनका चित्त श्रीहरि के पवित्र कथा-कीर्तन में डूब गया है वे किसी भी प्रकार की बाधा या रुकावट के कारण श्रीहरि के कथा श्रवण रूपी कल्याण मार्ग को नहीं छोड़ते।’’


ब्रह्मा ने प्रियव्रत को उपदेश दिया, ‘‘पुत्र! भगवान के चरणों में मन लगाकर तो तुमने परमार्थ प्राप्ति का मार्ग पहले ही ढूंढ लिया है, अब तुम श्रीहरि द्वारा किए गए विधान के अनुसार भोगों को भोगो और अंत में परमात्मा में लीन हो जाओ।’’


प्रियव्रत ने नतमस्तक होकर ब्रह्मा की आज्ञा मान ली। मनु ने प्रियव्रत का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ब्रह्मष्मती से कर दिया और शासन का सम्पूर्ण दायित्व प्रियव्रत के ऊपर छोड़ कर श्रीहरि के भजन-कीर्तन के लिए वन को चले गए। राजा प्रियव्रत ने हजारों वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया। उसके दस पुत्र तथा एक कन्या हुई। उस कन्या का विवाह शुक्राचार्य के साथ हुआ था।


एक बार राजा प्रियव्रत ने संकल्प किया कि मैं रात को भी दिन बना दूंगा। यह सोचकर वह सूर्य के समान  तेजस्वी एवं वेगवान रथ पर बैठ और द्वितीय सूर्य की तरह ही उनके पीछे-पीछे पृथ्वी की सात परिक्रमा कर गए। उस समय उनके रथ के पहिए से जो लीकें बनीं वे ही सात समुद्र बन गए। उनके चरण चिन्हों से पृथ्वी पर सात द्वीप बन गए। राजा प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को एक-एक द्वीप दे दिया। उनके तीन पुत्र बाल्यावस्था से ही निवृत्तिमार्ग पर निकल गए थे और संन्यास लेकर सांसारिक प्रपंच से दूर हो गए थे। राजा प्रियव्रत सब कर्मों से निवृत्त होकर पुन: अपने गुरु देवर्षि नारद की शरण में पहुंचे और उनसे प्रार्थना की, ‘‘भगवन! अब बहुत हो गया। अब मेरी सद्गति का मार्ग मुझे दिखाइए।’’


फिर अपनी पत्नी को साम्राज्य भोगने के लिए छोड़ कर देवर्षि नारद के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए उन्होंने भगवान श्रीहरि की उपासना में अपना चित्त स्थिर कर लिया। प्रियव्रत के तपस्या में संलग्र हो जाने पर उनके पुत्र आग्नीध्र धर्मानुसार अपनी प्रजा का पालन करने लगे। एक बार वह मंदराचल पर्वत की सुरम्य घाटी में गए और वहीं तपस्या करने लगे। ब्रह्मा को फिर चिंता हुई। उन्होंने अपनी सभा की अप्सरा पूर्वचित्ति को राजकुमार का तप भंग करने भेजा। अप्सरा पूर्वचित्ति ने तपस्या में लीन तपस्वी राजकुमार का अपनी मोहक सुगंध, नुपूर ध्वनि एवं विभिन्न मादक कलाओं द्वारा ध्यान भंग कर दिया।


राजकुमार ने आंखें खोलीं। अप्सरा के रूप-सौंदर्य पर मोहित होकर वह अप्सरा के साथ विलास में लिप्त हो गए। अत्यंत आसक्त होकर उन्होंने अप्सरा को प्रसन्न कर लिया। उनके नौ पुत्र हुए। उन्होंने हजारों वर्ष तक राजसुख भोगा। अप्सरा को भी वह परम पुरुषार्थ का स्वरूप समझते रहे जितने दिनों तक प्रियव्रत ने राज किया, वे प्रजा के हित में अनेक कल्याणकारी कार्य करते रहे। तत्पश्चात उनकी संतानों ने भी उनके बताए मार्ग का अनुसरण किया। 

(राजा पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित पुराणों की कथाएं से साभार)

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!