गाथा छड़ी मुबारक की: विशाल पूजा के साथ हुआ अमरनाथ यात्रा का समापन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Aug, 2017 08:19 AM

gatha chadi mubarak ki amarnath yatra

श्री अमरनाथ यात्रा 7 अगस्त सोमवार रक्षा बंधन यानी श्रावण पूर्णिमा वाले दिन छड़ी मुबारक पूजन के साथ समाप्त हो गई। यह यात्रा सर्वप्रथम भृगु ऋषि ने की थी। श्री अमरनाथ जी यात्रा की सदियों से

श्री अमरनाथ यात्रा 7 अगस्त सोमवार रक्षा बंधन यानी श्रावण पूर्णिमा वाले दिन छड़ी मुबारक पूजन के साथ समाप्त हो गई। यह यात्रा सर्वप्रथम भृगु ऋषि ने की थी। श्री अमरनाथ जी यात्रा की सदियों से परम्परा चली आ रही है। दर्शनार्थियों एवं साधु-महात्माओं का एक विशाल समूह प्रतिवर्ष श्रीनगर से रवाना होता है। समूह के साथ शैव्य निर्मित दंड भगवान शिव के झंडे के साथ आगे चलता है, इसे छड़ी मुबारक कहते हैं। आजकल इस छड़ी का नेतृत्व दशनामी अखाड़ा श्रीनगर के महंत श्री दीपेन्द्र गिरि कर रहे हैं।


रक्षाबंधन की पूर्णिमा के दिन जो सामान्यत: अगस्त माह में पड़ती है, भगवान भोलेनाथ भंडारी स्वयं श्री पावन अमरनाथ गुफा में पधारते हैं। रक्षा बंधन के दिन ही पवित्र छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है। परम्परा के अनुसार श्रीनगर के दशनामी अखाड़े में पहले भूमि पूजन, फिर ध्वजा पूजन करके छड़ी मुबारक को श्री शंकराचार्य मंदिर और हरि पर्वत पर स्थित क्षारिका भवानी मंदिर ले जाया जाता है इसके बाद एक बड़े जत्थे के साथ छड़ी मुबारक रवाना होती है। कल्हण रचित ग्रंथ राजतरंगिणी के अनुसार श्री अमरनाथ यात्रा का प्रचलन ईस्वी से भी एक हजार वर्ष पूर्व का है। एक किंवदंती यह भी है कि कश्मीर घाटी पहले एक बहुत बड़ी झील थी जहां सर्पराज नागराज दर्शन दिया करते थे। अपने संरक्षक मुनि कश्यप के आदेश पर नागराज ने कुछ मनुष्यों को वहां रहने की अनुमति दे दी। मनुष्यों की देखा-देखी वहां राक्षस भी आ गए जो बाद में मनुष्य व नागराज दोनों के लिए सिरदर्द बन गए।


अंतत: नागराज ने कश्यप ऋषि से इस संबंध में बातचीत की। कश्यप ऋषि ने अपने अन्य संन्यासियों को साथ लेकर भगवान भोले भंडारी से प्रार्थना की। तब शिव भोले नाथ ने प्रसन्न होकर उन्हें एक चांदी की छड़ी प्रदान की। यह छड़ी अधिकार एवं सुरक्षा की प्रतीक थी। भोलेनाथ ने आदेश दिया कि इस छड़ी को उनके निवास स्थान अमरनाथ ले जाया जाए जहां वह प्रकट होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देंगे। संभवत: इसी कारण आज भी चांदी की छड़ी लेकर महंत यात्रा का नेतृत्व करते हैं।


रक्षा बंधन वाले दिन पवित्र श्री अमरनाथ गुफा पहुंचने पर पवित्र हिमशिवलिंग के पास महंत दीपेन्द्र गिरि पारम्परिक विधि विधान और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ छड़ी मुबारक का पूजन किया। इस विशाल पूजा के साथ 40 दिन चलने वाली पवित्र अमरनाथ यात्रा का समापन हो गया। पवित्र एवं पावन गुफा में पूजन के उपरांत 2 दिन बाद लिद्दर नदी के किनारे पहलगांव में पूजन एवं विसर्जन की रस्म अदा की जाएगी और शिव भक्त फिर से अगले वर्ष की यात्रा का इंतजार करने लगेंगे।
 

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