श्राद्ध पक्ष पर यहां लगता है लोगों का तांता, पिंडदान से पितरों को मिलता बैकुंठ धाम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Sep, 2017 11:01 AM

gaya pinda daan

गया बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर बसा है। यहां श्राद्ध पक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के पिंडदान के लिए लोगों का तांता

गया बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर बसा है। यहां श्राद्ध पक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के पिंडदान के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पूर्वजों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। जिसके कारण गया को श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। गया का वर्णन रामायण में भी मिलता है। गया में पहले विविध नामों से 360 वेदियां थी, लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं। आमतौर पर इन्हीं वेदियों पर विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी समझा जाता है। हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि यदि आप शीघ्र ही अपने पूर्वजों का उद्धार चाहते हैं, उन्हें मुक्ति दिलाना चाहते हैं, उन्हें नर्क की आग से बचाकर स्वर्ग भेजना चाहते हैं, उन्हें अन्य योनियों से मुक्ति दिलाना चाहते हैं तो ‘गया’ तीर्थ पर जाकर उनका श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि करें।
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एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में गयासुर नामक एक दैत्य ने तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया। भगवान विष्णु ने दैत्य को देवी-देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान दे दिया। वरदान मिलने के बाद कोई भी घोर पापी गयासुर को छूकर स्वर्ग जाने लगा। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए देवताअों ने एक यज्ञ के नाम पर छल पूर्वक गयासुर का संपूर्ण शरीर मांग लिया। गयासुर अपना शरीर देने के लिए उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर मुख करके लेट गया। माना जाता है कि गयासुर का शरीर 5 कोस में फैला हुआ है। इसी 5 कोस के भूखंड का नाम गया पड़ गया। गयासुर के पुण्य प्रभाव से ही वह स्थान तीर्थ के रूप में स्थापित हो गया। गयासुर के मन से मगर लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और उसने देवताओं से फिर वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। जो भी लोग यहां पर पिंडदान करें, उनके पितरों को मुक्ति मिले। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने यानी पिंडदान के लिए गया आते हैं।

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