प्रसाद के रूप में बांटे शहद, मिलेगा मनपसंद Partner और सुंदर रूप

Edited By ,Updated: 20 Dec, 2016 11:43 AM

goddess katyayani

माता भगवती का छठा अवतार हैं देवी कात्यायनी। मान्यता है कि महर्षि कात्यायन ने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा के साथ वन में कठोर तपस्या की थी। महर्षि की तपस्या से

माता भगवती का छठा अवतार हैं देवी कात्यायनी। मान्यता है कि महर्षि कात्यायन ने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा के साथ वन में कठोर तपस्या की थी। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। तत्पश्चात महिषासुर नामक एक राक्षस के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिदेवों के तेज से एक कन्या का जन्म हुआ जिसने अपनी असीम शक्ति और तेज के बल पर महिषासुर का अंत कर दिया।


कात्य गोत्र में जन्म लेने से देवी भगवती कात्यायनी कहलाई। देवी कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत विशाल एवं दिव्य माना गया है। स्वर्ण के सदृश्य चमकदार शरीर वाली कात्यायनी की चार भुजाएं हैं।  इनके दो हाथों में तलवार एवं कमल पुष्प सुशोभित हैं जबकि दो हाथ वर और अभय मुद्रा में अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। देवी कात्यायनी का वाहन सिंह है। इनकी पूजा से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिनके विवाह में बाधा आ रही है उन्हें देवी कात्यायनी की पूजा करने से लाभ मिलता है और विवाह शीघ्र होता है। 


मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रह कर भी आलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए मां की उपासना से अधिक सुगम और सरल मार्ग दूसरा नहीं है। इनका उपासक निरंतर इनके सान्निध्य  में रह कर परम पद का अधिकारी बन जाता है।


लकड़ी से निर्मित चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर कात्यायनी की मूर्त अथवा चित्र स्थापित करके शुद्ध घी का दीपक लगातार पूजन पूर्ण होने तक प्रज्वलित रखा जाता है। कात्यायनी देवी की प्रसन्नता के लिए ‘चंद्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दध्यतिवि दानवघातिनी।’ मंत्र का श्रद्धापूर्वक जप करते हुए लाल पुष्प जैसे लाल कनेर, गुड़हल, लाल गुलाब, लाल कमल आदि अॢपत करने चाहिएं। देवी कात्यायनी का षोडोपचार विधि से पूजन करने के उपरांत आरती और प्रार्थना  करनी चाहिए। कात्यायनी की पूजा करते समय ॐ ऐं ह्वीं क्लींचामुंडायै विच्चै’ अथवा ॐ कात्यायनी देव्यै नम:’ मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।


देवी कात्यायनी की पूजा में प्रसाद के रूप में शहद का प्रयोग शुभ माना गया है। कहते हैं कि इसके प्रभाव से भक्तों को देवी के समान तेज और सुंदर रूप प्राप्त होता है। पूजन पूर्ण होने के उपरांत कन्या लांगुरों को प्रसाद भेंट आदि देकर प्रसन्न करना चाहिए।
 

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